- नीम की लकड़ी से बनते हैं भगवान के रथ
- बसंत पंचमी को होता है लकड़ी का चयन
- अक्षय तृतीया के दिन से बनने लगते हैं रथ
Jagannath Yatra Interesting Facts: भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का उत्सव मंगलवार यानी 23 जून से शुरू हो रहा है! इस यात्रा से जुड़ी कई रोचक बातें हैं, जिसे आपको जरूर जानना चाहिए। भगवान जगन्नाथ के साथ बलराम और सुभद्रा के रथ से भी जुड़े कई ऐसे तथ्य हैं, जिसे आम लोग कम ही जानते हैं। भगवान का रथ हर साल किस लकड़ी से बनता है, इस रथ को कैसे मंदिर तक लाया जाता है और रथ को कौन लाता है, आदि कई ऐसी बाते हैं, जो इस यात्रा को बहुत खास बनाती हैं। तो आइए रथयात्रा से जुड़े इन तथ्यों को जानें।
जानें, भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा से जुड़े ये रोचक तथ्य
1. चार धाम तीर्थधामों में से पुरी का जगन्नाथ मंदिर इनमें से एक है। 800 साल पुराने इस मंदिर में भगवान कृष्ण को जगन्नाथ के रूप में पूजा जाता है और इनके साथ उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा भी विराजमान हैं। रथयात्रा में तीनों ही लोगों के रथ निकलते हैं।
2. जगन्नाथ रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ के साथ भाई बलराम और बहन सुभद्रा के लिए अलग-अलग रथ होते हैं और ये रथ हर साल बनते हैं। रथयात्रा में सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ होता है। सबसे आगे बलराम और बीच में बहन सुभद्रा का रथ रहता है। सभी के रथ अलग रंग और ऊंचाई के होते हैं।
3. तीनों देवों के रथ का नाम भी है। बलरामजी के रथ को 'तालध्वज' कहा जाता है और ये लाल और हरे रंग का होता है। वहीं सुभद्रा के रथ का नाम 'दर्पदलन' अथवा ‘पद्म रथ’ है। उनके रथ का रंग काला या नीले रंग को होता है, जिसमें लाल रंग भी होता है। भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष अथवा गरुड़ध्वज कहा जाता है। इनका रथ लाल और पीला रंग का होता है।
4. हर साल बनने वाला ये रथ एक समान ऊंचाई का ही बनाय जाता है। इसमें भगवान जगन्नाथ का रथ 45.6 फीट ऊंचा, बलराम का रथ 45 फीट और देवी सुभद्रा का रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है।
5. रथ हमेशा नीम की लकड़ी से बनाया जाता है, क्योंकि ये औषधिय लकड़ी होने के साथ पवित्र भी मानी जाती है। बता दें कि नीम के किस पेड़ से लकड़ी का चयन होगा इसका फैसला जगन्नाथ मंदिर समिति तय करती है।
6. भगवान के रथ में एक भी कील या कांटे आदि का प्रयोग नहीं होता। यहां तक की कोई धातु भी रथ में नहीं लगाई जाती है। रथ की लकड़ी का चयन बसंत पंचमी के दिन और रथ बनाने की शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन से होता है।
7. तीनों रथ के तैयार होने के बाद इसकी पूजा के लिए पुरी के गजपति राजा की पालकी आती है। इस पूजा अनुष्ठान को 'छर पहनरा' नाम से जाना जाता है। इन तीनों रथों की वे विधिवत पूजा करते हैं और ‘सोने की झाड़ू’ से रथ मण्डप और रास्ते को साफ़ करते हैं।
8. आषाढ़ माह की शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को रथयात्रा ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के साथ रथ को लोग खींचते हैं। जिसे रथ खींचने का सौभाग्य मिल जाता है, वह ह महाभाग्यशाली माना जाता है।
9. रथयात्रा जगन्नाथ मंदिर से शुरू हो कर गुंडीचा मंदिर पहुंचती है। यहां भगवान जगन्नाथ, बलराम और देवी सुभद्रा सात दिनों के लिए विश्राम करते हैं।
10. गुंडीचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन को ‘आड़प-दर्शन’ कहा जाता है। अपने मौसी के घर भगवान रहते हैं।
11. पौराणिक मान्यता है कि रथयात्रा के तीसरे दिन देवी लक्ष्मी, भगवान जगन्नाथ के पास आती हैं, लेकिन द्वैतापति दरवाज़ा बंद कर देते हैं। इससे देवी लक्ष्मी नाराज हो कर रथ का पहिया तोड़ कर हेरा गोहिरी साही पुरी’ नामक मुहल्ले स्थित मंदिर में लौट जाती हैं।
12. लक्ष्मी जी के रूठ जाने पर भगवान जगन्नाथ उन्हें मनाते हैं। मान-मनौवल संवादों के जरिये तब एक अद्भुत भक्ति रस का माहौल बनता है।
13. आषाढ़ माह के दसवें दिन सभी रथ पुन: मुख्य मंदिर की लौटे हैं। रथों के वापसी यात्रा की रस्म को बहुड़ा यात्रा कहते हैं।
14. जगन्नाथ मंदिर पहुंचने के बाद भी सभी प्रतिमाएं रथ में ही रहती हैं। अगले दिन एकादशी पर मंदिर खोले जाते हैं और तब देवों को स्नान के बाद वैदिक मंत्रोच्चार के बीच उन्हें प्रतिष्ठित किया जाता है।
आस्था और भक्ति से भरा रथयात्रा मेला काशी में भी काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है। यहां यह उत्सव 9 दिन तक चलता है।