- जितिया व्रत में जीमूतवाहन की पूजा की जाती है
- इस दिन माताएं संतान की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं
- यह व्रत दो दिनों का होता है
Jitiya/Jivitputrika Vrat Katha: सनतान धर्म में तीज और जितिया का अहम स्थान है। दोनों व्रत महिलाएं करती है । तीज पत्नी अपने पति के लिए करती है और जितिया व्रत अपनी संतान के लिए। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में यह व्रत बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है । हिंदू पंचांग के अनुसार जितिया व्रत आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी से शुरू हो जाती है। इस साल यह व्रत 29 सितंबर को है।
इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर अपने संतान की लंबी आयु के लिए जीमूतवाहन की पूजा अर्चना करती है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि यदि इस दिन व्रत को माताएं श्रद्धा पूर्वक करें, तो उनके संतान की लंबी आयु होती है। मान्यताओं के अनुसार जितिया की कथा को पढ़ने से जीमूतवाहन प्रसन्न होकर संतान की लंबी आयु कर देते हैं। तो आइए चले जिउतिया व्रत की कथा जानने।
जितिया व्रत की कथा,Jitiya Vrat Katha, JivitPutrika Vrat Katha
पौराणिक कथा के अनुसार गंधर्व राज जीमूतवाहन बड़े ही धर्मात्मा पुरुष थे। वह युवावस्था में ही राजपाट छोड़कर वन में पिता की सेवा करने चले गए थे। एक दिन भ्रमण करते हुए उन्हें नाग माता मिली। उन्हें देखकर जीमूतवाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा। नाग माता ने उन्हें बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है। उन्होंने बताया वह वंश की रक्षा करने के लिए गरुड़ से समझौता किया था कि वह प्रतिदिन उसे एक नाग देंगे जिसके बदले में वह हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा।
इसी बात को रखने के लिए नागमाता के पुत्र को गरूड़ के सामने जाना पड़ रहा है। नागमाता की बात सुनकर जीमूतवाहन ने नागमाता को वचन दिया कि वह उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और वह उनके जीवन की रक्षा करेंगे। तभी जीमूतवाहन ने नाग माता के पुत्र की जगह कपड़े में खुद को लपेट कर गुरुड़ के सामने खुद को पेश किया। उसी जगह पर जहां गरुड़ आया करता था।
कुछ ही देर में गरुड़ वहां पहुँचा और जीमूतवाहन को अपने पंजे में दबाकर पहाड़ की तरफ उड़ना शुरू कर दिया। गरुड़ को उड़ते समय कुछ अजीब सा महसूस हुआ उसने सोचा इस बार सांप की हमेशा की तरह चिल्लाने और रोने की आवाज क्यों नहीं आ रही है। यह सोचकर गरुड़ तुरंत कपड़े को हटाना शुरू किया। कपड़े हटते ही उसने वहां सांप की जगह जीमूतवाहन को पाया। तब जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ से कह सुनाई। यह बात सुनकर गरुड़ ने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और सांपों को ना खाने का वचन भी दे दिया। इस प्रकार नागमाता और उनका परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित हो पाई।