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Lohri 2021 Date : जानिए साल 2021 में कब मनाई जाएगी लोहड़ी, क्या है इस पर्व की मान्यताएं और महत्व

Updated Jan 06, 2021 | 09:34 IST

Lohri in 2021 Date : साल की शुरुआत में लोहड़ी का पावन पर्व अपने साथ हर्षोल्लास और खुशियां लेकर आने वाला है। आइए जानते हैं साल 2021 में जनवरी माह में कब मनाई जाएगी लोहड़ी।

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Lohri 2021
मुख्य बातें
  • लोहड़ी का पर्व नवविवाहित जोड़े और नवजात शिशु के लिए खास माना जाता है
  • पौराणिक कथाओं के अनुसार लोहड़ी का पर्व भगवान शिव और देवी सती के जीवन से जुड़ा है
  • मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है

हर साल पौष माघ के महीने में कड़कड़ाती ठंड में मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है। लोहड़ी का त्योहार हर्षोल्लास से भरा, जीवन में नई स्फूर्ती, एक नई ऊर्जा, आपसी भाईचारे को बढ़ाने व अत्याचारी दुराचारियों का पराजय और दीन दुखियों के नायक, सहायक की विजय का प्रतीक है। मूलरूप से यह पर्व सिखों द्वारा पंजाब हरियाणा, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। परंतु लोकप्रियता के चलते यह भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्वभर में मनाया जाने वाला उत्सव है। आइए जानते हैं साल 2021 में कब मनाई जाएगी लोहड़ी और क्या हैं इसके महत्व। 

इस दिन मनाई जाएगी लोहड़ी (Lohri 2021 Date)

साल 2021 में मकर संक्रांति से एक दिन पहले 13 जनवरी को लोहड़ी का पर्व मनाया जाएगा।

महत्व और कैसे मनाया जाता है यह पर्व (How is Lohri Celebrated)

लोहड़ी का पर्व नवविवाहित जोड़े और नवजात शिशु के लिए खास माना जाता है। क्योंकि इस दिन ये लोग अग्नि में आहूति देकर अपने सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करते हैं। पारंपरिक तौर पर लोहड़ी फसल की बुआई और कटाई से जुड़ा एक पर्व है। इस मौके पर पंजाब में नई फसल की पूजा की जाती है। लोहड़ी की रात लोग एक साथ इकट्ठा होकर खुले स्थान पर अग्नि जलाकर परिवार और आस पड़ोस के लोग लोकगीत गाते हुए नए धान के लावे, मक्का, गुड़, रेवड़ी और मूंगफली आदि उस पवित्र अग्नि को अर्पित कर उसकी परिक्रमा करते हैं। इस तरह नाच गाकर लोग एक दूसरे को लोहड़ी की बधाईयां देते हैं।

लोहड़ी की मान्यताएं (Why we celebrate Lohri)

हिंदु पौराणिक कथाओं के अनुसार लोहड़ी का पर्व भगवान शिव और देवी सती के जीवन से जुड़ा हुआ है। कथा के अनुसार माता पार्वती के पिता प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया और अपने दामाद भगवान शिव को इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया। इससे नाराज होकर देवी सती अपने पिता के घर पहुंच गई। वहां पर पति भगवान शिव के बारे में कटु वचन और अपमान सुन वह यज्ञ कुंड में समा गई। मान्यता है कि उनकी याद में ही अग्नि जलाई जाती है। इस अवसर पर वैवाहिक पुत्रियों के मायके से उनके ससुराल त्योहार भेजा जाता है। जिसमें रेवड़ी, मिठाई औऱ मूंगफली से लेकर कपड़े फल आदि चीजे शामिल होती हैं। 

लोहड़ी की कहानी (Folk tale of Lohri)

लोक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार मुगलकाल के दौरान पंजाब का एक व्यापारी वहां की लड़कियों और महिलाओं को कुछ पैसे के लालच में बेचने का व्यापार किया करता था। उसके इस आतंक से इलाके मे काफी दहशत का माहौल रहता था और लोग अपनी बहन बेटियों को घर से बाहर नहीं निकलने दिया करते थे। लेकिन वह कुख्यात व्यापारी घरों में घुसकर जबरन महिलाओं और लड़कियों को उठा लिया करता था। महिलाओं और लड़कियों को इस आतंक से बचाने के लिए दुल्ला भाटी नाम के नौजवान शख्स ने उस व्यापारी को कैद कर लिया औऱ उसकी हत्या कर दी। उस कुख्यात व्यापारी का अंत करने और लड़कियों को उससे बचाने के लिए पंजाब में सभी ने दुल्ला भाटी का शुक्रिया अदा किया और तभी से लोहड़ी का पर्व दुल्ला भाटी के याद में मनाया जाता है, उनकी याद में इस दिन लोकगीत भी गाए जाते हैं। 
 

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