- मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है लोहड़ी का पर्व
- भगवान शिव और सती से जुड़ी हैं लोहड़ी के त्योहार की पुरातन मान्यताएं
- दुल्ला भाटी को याद करते हुए भी पंजाब के लोग मनाते हैं यह पर्व
Lohri 2021 Date and Significance: प्रति वर्ष पौष मा महीने में कड़कड़ाती ठंड में मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी का पर्व होता है। लोहड़ी का त्योहार हर्षोल्लास से भरा और जीवन में नई स्फूर्ती-ताजगी, नवीन ऊर्जा और आपसी भाईचारे को बढ़ाने व अत्याचारी दुराचारियों का पराजय, दीन दुखियों के नायक की विजय का माना गया है।
वैसे तो आधुनिक समय में लोहड़ी का पर्व पूरे देश में जगह-जगह होता है लेकिन मूलरूप से यह पर्व सिखों द्वारा पंजाब हरियाणा, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश में बड़े उत्साह से लोग मनाते हैं। लोकप्रियता के चलते यह भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्वभर में मनाए जाने वाले उत्सव के रूप में जाना जाता है। यहां आइए जानते हैं 2021 साल में कब मनाई जाएगी लोहड़ी और इसका महत्व क्या है।
2022 में कब है लोहड़ी (Lohri 2022 Date)
साल 2022 में मकर संक्रांति से एक दिन पहले 13 जनवरी को लोहड़ी का पर्व मनाया जाएगा। मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाएगी।
कैसे मनाई जाती है लोहड़ी और क्या है महत्व (How is Lohri Celebrated and Significance)
लोहड़ी का त्योहार नवविवाहित जोड़ों और नवजात शिशु के लिए बेहद खास होता है क्योंकि इस दिन ये लोग अग्नि में आहूति देकर सुखी वैवाहिक जीवन की कामना की जाती है। पारंपरिक तौर पर लोहड़ी फसल की बुआई और कटाई से जुड़ा एक त्योहार है। इस मौके पर पंजाब में नई फसल की पूजा भी होती है।
लोहड़ी की रात लोग एक साथ आकर खुले स्थान पर अग्नि जलाकर परिवार और पड़ोसियों के साथ लोकगीत गाते हुए नए धान के लावे, मक्का, गुड़, रेवड़ी व मूंगफली पवित्र अग्नि को अर्पित करते हुए उसकी परिक्रमा लगाते हैं। इस तरह नाच गाकर एक दूसरे को लोहड़ी की बधाईयां देते हुए हर्ष और उल्लास से यह त्योहार मनाया जाता है।
लोहड़ी से जुड़ी मान्यताएं (Why celebrate Lohri / Lohri History)
हिंदु पौराणिक कथा अनुसार लोहड़ी का पर्व भगवान शिव और देवी सती के जीवन से जुड़ा है। कथा के अनुसार माता पार्वती के पिता प्रजापति दक्ष ने यज्ञ आयोजन किया और अपने दामाद भगवान शिव को इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया। इससे नाराज होकर देवी सती अपने पिता के घर पहुंचीं और वहां पति भगवान शिव के बारे में कटु वचन और अपमान सुन वह यज्ञ कुंड में समा गईं।
ऐसी मान्यता है कि उनकी याद में ही अग्नि जलाई जाती है। इस अवसर पर वैवाहिक पुत्रियों को मायके से उनके ससुराल भेजा जाता है। इसमें रेवड़ी, मिठाई औऱ मूंगफली से लेकर कपड़े फल आदि चीजें भी शामिल हैं।
लोहड़ी की स्थानीय लोक कहानी (Folk tale Story of Lohri)
भगवान शिव-सती के अलावा लोहड़ी से लोक कथा और मान्यताएं भी जुड़ी हैं, जिनके अनुसार मुगलकाल के दौरान पंजाब का एक व्यापारी वहां की लड़कियों और महिलाओं को कुछ पैसे के लालच में बेचने का व्यापार किया करता था। उसके इस आतंक से इलाके मे काफी दहशत का माहौल रहता था और लोग अपनी बहन बेटियों को घर से बाहर नहीं निकलने दिया करते थे। लेकिन वह कुख्यात व्यापारी घरों में घुसकर जबरन महिलाओं और लड़कियों को उठा लिया करता था।
महिलाओं और लड़कियों को इस आतंक से बचाने के लिए दुल्ला भाटी नाम के नौजवान शख्स ने व्यापारी को कैद कर उसकी हत्या कर दी। कुख्यात व्यापारी का अंत करने और लड़कियों को उससे बचाने के लिए पंजाब में सभी ने दुल्ला भाटी का शुक्रिया किया और तभी से लोहड़ी का पर्व दुल्ला भाटी के याद में भी मनाते हैं, उनकी याद में इस दिन लोकगीत का गायन भी होता है।