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Makar Sankranti Til Daan: मकर संक्राति के दिन काले तिल का दान, जानें क्यों कहलाता है महादान

Updated Jan 14, 2020 | 10:04 IST

इस साल मकर संक्रांति (Makar Sankranti) पर स्नान और दान का विशेष महत्व होता है। इस दिन काले तिल (black sesame) का दान महादान माना जाता है, जानें क्यों?

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तस्वीर साभार:&nbspInstagram
Makar Sankranti Til Daan
मुख्य बातें
  • काले तिल का दान करना होता है महादान।
  • शनि ने काले तिल से सूर्यदेव की पूजा की थी।
  • शनिदेव को काला तिल विशेष प्रिय है।

मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी। इस दिन तिल का विशेष महत्व होता है। तिल खाने से लेकर उसे छूना और उसका दान करना इस दिन बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। वैसे तो तिल सफेद और काला दोनों ही होता है, लेकिन इस दिन केवल काले तिल का दान करना विशेष फलदायी होता है। 

इस दिन तिल से बने व्यंजन और मिठाईयों को खाने के साथ दान किया जाता है। लेकिन काले तिल के दान के पीछे क्या वजह है, आप जानते हैं? वैसे केवल मकर संक्रांति पर ही नहीं पूरे माघ महीने में तिल का दान करना विशेष पुण्य वाला होता है। हिंदू धर्म में तिल दान करने के पीछे एक नहीं अनेक मान्यताएं है। हर मान्यता के पीछे एक ही वजह सामने आती है वह है परिवार की सुख-समृद्धि, शांति और पाप से मुक्ति। तो आइये जानें की तिल दान करने के पीछे क्या मान्यता है।

शनिदेव तिल दान से होते हैं प्रसन्न
माना जाता है कि शनिदेव को तिल सबसे प्रिय है। यदि मकर संक्रांति के तिल का दान और सेवन किया जाए तो इससे शनिदेव प्रसन्न होते हैं। जिन लोगों से शनि कुपित हैं उन लोगों को काले तिल का दान जरूर करना चाहिए। भगवान विष्णु को भी तिल बेहद प्रिय है इसलिए इस दिन सूर्य को अर्पित किए जाने वाले जल में तिल डालना और सूर्य देव को स्मरण कर तिल को छू कर दान करना विशेष फलदाय होता है। 

दान तभी होता है पूर्ण, जब तिल हो इसमें शामिल
मकर संक्रांति पर चावल, उड़द की दाल, मूंगफली या गुड़ का सेवन और दान करना तभी पूर्ण होता है जब इसमें तिल का अंश भी शामिल हो। तिल का दान करना कई जन्मों के पाप को हर लेता है।  

सूर्य देव और उनके पुत्र शनि से जुड़ा है दान का महत्व
सूर्य देव की दो पत्नी मानी गई हैं, इनमें एक का नाम छाया और दूसरी का नाम संज्ञा है। सूर्य के पुत्र शनिदेव छाया के गर्भ से जन्मे हैं, वहीं यमराज सूर्य और संज्ञा के पुत्र हैं। एक बार सूर्यदेव ने छाया को यमराज से भेदभाव करते देखा तो उन्होंने छाया और अपने पुत्र शनि को खुद से अलग कर दिया। 

शनि देव ने दिया सूर्य देव के शाप
सूर्यदेव के त्याग से रुष्ट होकर शनिदेव और उनकी मां छाया ने सूर्य को कुष्ट रोग का शाप दे दिया। उधर, पिता को कष्ट में देख कर यमराज ने कठोर तप से उन्हें इस कष्ट से मुक्त करा दिया। कष्ट मुक्त होने के बाद भगवान सूर्य ने शनि का घर यानी कुंभ को जला दिया इससे शनि व उनकी मां को बेहद कष्ट हुआ। 

यमराज ने निभाई थी मध्यस्थता की भूमिका
पिता-पुत्र के इस क्रोध को शांत करने के लिए यमराज ने मध्यस्थता निभाई। यमराज ने अपने पिता से अनुरोध किया कि वह शनि को माफ कर दें। इसके बाद सूर्यदेव मकर संक्रांति के दिन शनि के घर और देखा कि वहां सब कुछ जल का राख हो चुका है। शनिदेव ने पिता को घर पर आदर-सत्कार दिया लेकिन कुछ भी उनके सत्कार को नहीं था। केवल तिल बचा था, सो उन्होंने अपने पिता की पूजा तिल से कर दी। 

इसलिए तिल बना पूजनीय और महादान
शनिदेव के तिल से की गई पूजा से पिता सूर्य बेहद प्रसन्न हुए और आशीर्वाद दिया कि जो भी मकर संक्रांति के दिन काले तिल उनकी और शनि देव की पूजा करेगा या काले तिल का दान करेगा, उसके जीवन के सारे कष्ट मिट जाएंगे। यही कारण है कि मकर संक्रांति के दिन काले तिल का दान, पूजा व खाना बेहद पुण्यदायी माना गया है।

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