- पुत्रदा एकादशी श्रावण और पौष शुक्ल पक्ष में पड़ती है
- पुत्रदा एकादशी साल की पहली एकादशी है
- इस व्रत का महत्व संतान की तरक्की से भी जोड़ा गया है
हिन्दू पंचांग के अनुसार, साल में 24 एकादशियां पड़ती हैं, जिनमें से दो को पुत्रदा एकादशी का महत्व सबसे अधिक है। पुत्रदा एकादशी श्रावण और पौष शुक्ल पक्ष में पड़ती हैं। पुत्रदा एकादशी साल की पहली एकादशी है जो इस बार 6 जनवरी 2020 को पड़ रही है। सभी एकादशियों में पुत्रदा एकादशी का विशेष स्थान है। कहा जाता है कि इस व्रत को रखने से योग्य संतान की प्राप्ति होती है। वहीं इस व्रत का महत्व संतान की तरक्की से भी जोड़ा गया है।
इस दिन सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु की आराधना की जाती है। कहते हैं कि जो भी भक्त पुत्रदा एकादशी का व्रत पूरी आस्था के साथ करते हैं उन्हें संतान का सुख प्राप्त होता है। ऐसा भी कहा जाता है कि जो कोई भी पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा पढ़ता है, सुनता है या सुनाता है उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
पुत्रदा एकादशी की व्रत विधि
- एकादशी के दिन सुबह उठकर भगवान विष्णु का स्मरण करें।
- फिर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- अब भगवान के सामने दीपक जलाकर व्रत का संकल्प लें और कलश की स्थापना करें।
- अब कलश में लाल वस्त्र बांधकर उसकी पूजा करें ।
- भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्नान कराएं और वस्त्र पहनाएं।
- अब भगवान विष्णु को नैवेद्य और फलों का भोग लगाएं।
- इसके बाद विष्णु को धूप-दीप दिखाकर विधिवत् पूजा-अर्चना करें और आरती उतारें।
- पूरे दिन निराहार रहें। शाम के समय कथा सुनने के बाद फलाहार करें।
- दूसरे दिन ब्राह्मणों को खाना खिलाएं और यथा सामर्थ्य दान देकर व्रत का पारण करें।
पुत्रदा एकादशी की कथा
इस व्रत के बारे में यह कथा बहुत प्रचलित है। द्वापर युग में राजा महीजित बहुत धर्मप्रिय और विद्वान राजा था। लेकिन उसे इस बात का दुख था कि वह संतान विहीन था। अपनी व्यथा उसने अपने गुरु लोमेश जी को बतायी। लोमेश ने राजा को बताया कि पूर्व जन्म के पाप की वजह से उनको इस जन्म में औलाद का सुख नहीं मिल रहा है। साथ ही लोमेश गुरु जी ने कहा कि अगर राजा विधिवित पुत्रदा एकादशी का व्रत रहेंगे तो उनको पुत्र की प्राप्ति हो जाएगी।
राजा ने कुछ वर्षों तक इस व्रत को लगातार रखा और फिर उनको सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। यह कथा पद्मपुराण में आती है। साथ ही इस दिन श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ अवश्य करें।