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Pausha Putrada Ekadashi Katha: पौष पुत्रदा एकादशी के पीछे क्या है कथा? जानिए राजा सुकेतुमान की रोचक कहानी

Updated Jan 24, 2021 | 07:59 IST

शुक्ल पक्ष में पौष माह के अंतर्गत पड़ने वाली एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी व्रत के रूप में जाना जाता है। इस व्रत से राजा सुकेतूमान की एक रोचक कथा जुड़ी हुई है।

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पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा 2021
मुख्य बातें
  • पौष माह के शुक्ल पक्ष में पड़ती है पौष पुत्रदा एकादशी
  • संतान प्राप्ति के लिए महिलाओं के बीच लोकप्रिय है व्रत
  • शास्त्रों में मिलती है राजा सुकेतूमान और रानी शैव्या की रोचक कथा

हिंदू संस्कृति में पूरे वर्ष विभिन्न देवी देवताओं को समर्पित व्रतों का पालन किया जाता है । कुछ महत्वपूर्ण व्रत जैसे प्रदोष, एकादशी आदि महीने में दो बार आते हैं। भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत हर चंद्र पखवाड़े की त्रयोदशी तिथि (तेरहवें दिन) पर मनाया जाता है, जबकि एकादशी तीर्थ व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और ग्यारहवें दिन रखा जाता है। सभी मासिक और वार्षिक व्रतों के बीच, एकादशी व्रत सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। आज 24 जनवरी को पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत है, जो संतान प्राप्ति के लिए बेहद अहम कहा गया है।

रोचक बात यह है कि एक वर्ष के दौरान, भक्त 24 बार एकादशी व्रत का पालन करते हैं, और प्रत्येक तिथि का एक विशिष्ट नाम होता है। पौष माह में पड़ने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कहा जाता है। हिंदू पौष माह आमतौर पर ग्रेगोरियन जनवरी के साथ शुरू होता है। यह व्रत 24 जनवरी को किया जा रहा है।

पौष पुत्रदा एकादशी 2021 का मुहूर्त (Pausha Putrada Ekadashi Muhurat)
इस वर्ष पौष पुत्रदा एकादशी व्रत 24 जनवरी को मनाया जा रहा है। एकादशी तिथि 23 जनवरी को सुबह 8:56 बजे से शुरू होकर 24 जनवरी 2021 को रात 10:57 बजे तक है लेकिन प्रात:काल बेला में जो मुहूर्त आता है उस दिन यानी 24 जनवरी को व्रत किया जाएगा।

पौष पुत्रदा एकादशी (Pausha Putrada Ekadashi 2021 Katha)

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, भद्रावती राज्य में सुकेतुमान नाम का राजा राज्य करता था। उनकी पत्नी और राज्य की रानी का नाम शैव्या था। राजा के पास सब कुछ था और सुख-संपत्ति धन धान्य के मामले में कोई कमी नहीं थी सिर्फ संतान का अभाव था। ऐसे में कुल के भविष्य को अंधकारमय देख राजा और रानी अक्सर उदास और चिंतित रहते थे।

राजा के मन में उनकी मृत्यु के बाद पिंडदान की चिंता सताने लगी और साथ ही राज्य के उत्तराधिकारी को लेकर भी मन व्याकुल रहने लगा। ऐसे में एक दिन राजा ने दुखी होकर अपने प्राण त्यागने का निश्चय कर लिया, हालांकि पाप के भय से उन्होंने इस विचार को त्याग दिया। एक दिन राजा का मन राजपाठ में नहीं लग रहा था, जिसके कारण वह जंगल की ओर भ्रमण और शिकार पर चले गए।

जंगल में राजा को पशु-पक्षी दिखाई दिए और इसके साथ ही मन में बुरे विचार आने शुरू हो गए। इसके बाद राजा दुखी होकर जंगल में ही एक तालाब किनारे बैठ गए। संयोग से इसी तालाब के किनारे ऋषि मुनियों के आश्रम थे। राजा आश्रम में गए और ऋषिगण राजा को देखकर प्रसन्न हुए और उनके विनम्र स्वभाव से प्रसन्न होकर अपनी इच्छा बताने के लिए कहा।

राजा ने अपने मन की चिंता और व्याकुलता मुनियों को कह डाली। राजा की चिंता सुनकर एक तपस्वी ने कहा कि एक पुत्रदा एकादशी व्रत है, जिसे संतान प्राप्ति हेतू राजा को रखना चाहिए। राजा ने अगले ही अवसर पर मुहूर्तानुसार व्रत को रखा और द्वादशी तिथि को इसका पूरी विधि-विधान से पारण भी किया। इसके फलस्वरूप रानी शैव्या को कुछ दिनों के बाद गर्भ धारण हो गया और 9 माह के पश्चात राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।

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