- 7 फरवरी को मनाई जाएगी षटतिला एकादशी।
- भगवान विष्णु की होती है पूजा।
- षटतिला एकादशी के दिन तिल का दान करने से होता है लाभ।
नई दिल्ली. सनातन धर्म में माघ मास को बहुत ही पवित्र और लाभदायक महीना माना गया है। माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है। वैसे तो साल की हर एक एकादशी बहुत ही महत्वपूर्ण होती है लेकिन षटतिला एकादशी का विशेष महत्व है।
षटतिला एकादशी भगवान विष्णु की पूजा श्रद्धा भाव के साथ की जाती है। षटतिला एकादशी के दिन पवित्र नदियों में स्नान भी किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि पवित्र नदियों में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पवित्र नदियों में स्नान करने के बाद श्रद्धालु जरूरतमंदों को दान भी देते हैं। इस दिन धार्मिक कार्यों में आगे रहना चाहिए और गरीबों की मदद करनी चाहिए।
कहा जाता है कि षटतिला एकादशी के दिन विधिवत तरीके से भगवान विष्णु की पूजा करने से वह प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की इच्छाएं पूरी करते हैं। विधिवत तरीके से षटतिला एकादशी की पूजा करने से बहुत सारे लाभ मिलते हैं।
क्या है षटतिला एकादशी का महत्व?
षटतिला एकादशी व्रत करना बहुत लाभदायक माना जाता है। यह व्रत करने से पापों से मुक्ति मिलती है। भगवान विष्णु अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं और उनके जीवन के कष्टों को हमेशा के लिए दूर करते हैं।
यह व्रत करने से जीवन में सुख-शांति बनी रहती है और हर एक कार्य में सफलता मिलती है। षटतिला एकादशी के दिन गरीबों को दान देना चाहिए। इस दिन तिल का प्रयोग करना चाहिए और जरूरतमंदों को भी तिल दान करना चाहिए। इस दिन छह प्रकार के तिल का उपयोग करना अनूकूल माना है।
कैसे करें षटतिला एकादशी के दिन पूजा?
पवित्र माघ के महीने में हर एक इंसान को स्वच्छता का खास ध्यान रखना चाहिए। माघ मास में लोगों को अपनी इंद्रियों को वश में करना चाहिए और भगवान को याद करना चाहिए।
अगर आप भी एकादशी का व्रत कर रहे हैं तो एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठिए और नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर भगवान की पूजा कीजिए। पूजा करते समय भगवान से व्रत करने का संकल्प लीजिए।
इस दिन गोबर, कपास और तिल को पुष्य नक्षत्र में मिलाकर 108 कंडे बनाइए और इनके उपयोग से हवन कीजिए। शाम की पूजा करने के बाद रात में जागरण कीजिए और दूसरे दिन धूप, दीप, नैवेद्य और अन्य चीजों से भगवान की पूजा कीजिए और उन्हें खिचड़ी का भोग लगाइए।
इसके बाद पेठा, नारियल, सीताफल और सुपारी से अर्घ्य दीजिए और स्तुति करते हुए भगवान से आग्रह कीजिए कि वह आपका अर्घ्य ग्रहण कर लें। इन सबके बाद ब्राह्मणों को घड़ा, श्यामा गौ और तिल पात्र दान कीजिए।
इसके बाद आप जितने तिलों का दान कर सकते हैं उतने तिलों का दान कीजिए। तिल स्नान, तिल का उबटन, तिल का हवन, तिल का तर्पण, तिल का भोजन और तिल का दान यह सब तिल के छह प्रकार कहे जाते हैं।
मान्यताओं के अनुसार यह कहा जाता है कि जितने तिलों का दान आप करेंगे उतने ही हजार साल आप स्वर्ग में वास करेंगे।