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Shani Strot: इस स्त्रोत से राजा दशरथ ने किया था शनिदेव को प्रसन्न, पाठ करने से मिलेगी प्रकोप से मुक्ति

Updated Feb 06, 2021 | 07:06 IST

शनि देव के कुदृष्टि से मुक्ति पाने के लिए लोगों को हर शनिवार शनि स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। शनि स्त्रोत का पाठ करने से शनि के कोप से छुटकारा मिलता है और जीवन में आने वाली सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।

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Shani Dev
मुख्य बातें
  • शनि स्त्रोत का पाठ करने से शनिदेव होते हैं खुश।
  • शनि के प्रकोप से मिलती है मुक्ति।
  • भगवान राम के पिता राजा दशरथ ने शनि स्त्रोत का पाठ करके किया था शनिदेव को प्रसन्न।

नई दिल्ली.  पौराणिक कथाओं के अनुसार यह कहा जाता है कि शनि भगवान के प्रकोप से बचने के लिए हर शनिवार शनि स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। शनिवार के दिन शनि देव की भक्ति करने से वह अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों को वरदान देते हैं। 

साढ़ेसाती और ढैय्या जैसी समस्या से निजात पाने के लिए भी कई लोग शनिवार के दिन शनि स्त्रोत का पाठ करते हैं और श्रद्धा-भाव से शनि देव की भक्ति करते हैं। शनिवार के दिन शनि देव के मंदिर में जा कर तिल का तेल चढ़ाना चाहिए और इस दिन तिल का दान करना चाहिए। 

यहां जानिए शनि स्त्रोत, अर्थ, कथा और लाभ।

शनि स्त्रोत

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।

नम: कालाग्निरुपाय कृतान्ताय च वै नमः। 1

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।

नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते। 2 

नम: पुष्कलगात्राय स्थुलरोम्णेऽथ वै नमः।

नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते। 3

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नमः।

नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने। 4

नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।

सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च। 5

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।

नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तु ते। 6 

तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।

नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमः। 7 


ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।

तुष्टो ददासि वै राज्यं रूष्टो हरसि तत्क्षणात्। 8


देवासुरमनुष्याश्र्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।

त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:। 9


प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे। 

एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:। 10


शनि स्त्रोत का अर्थ
मैं शंकर के समान रंग वाले शनि देव को नमस्कार करता हूं। कालाग्नि और कृतांत रूप वाले शनि देव को मैं नमस्कार करता हूं। जिनका शरीर कंकाल जैसा है और दाढ़ी, मूंछ और सिर के बाल लंबे हैं उन शनि देव को मैं नमस्कार करता हूं। 

बड़ी आंखों वाले और रौद्र रूप वाले शनि देव को मैं नमस्कार करता हूं। लंबे-चौड़े और मोटे रोएं वाले शनि देव को मैं नमस्कार करता हूं। रौद्र, भीषण और विकराल रूप वाले शनि देव को मैं नमस्कार करता हूं। 

सूर्य के बेटे शनि देव जो अभय प्रदान करते हैं मैं उन्हें नमस्कार करता हूं। तलवार के समान प्रतीक रखने वाले और अधोमुखी जैसे दृष्टि वाले शनि देव को मैं बार-बार नमस्कार करता हूं। 

शनि देव, आपने तपस्या करके अपने शरीर को गला लिया है, आप हमेशा तत्पर और आतुर रहते हैं ऐसे देव को मेरा नमस्कार है। शनिदेव आपके नेत्रों में ही ज्ञान है, आपको मेरा नमस्कार है। 

आप प्रसन्न होने पर अपने भक्तों की इच्छाएं पूरी करते हैं और गुस्सा होने पर सब कुछ छीन लेते हैं, शनिदेव आपको मेरा नमस्कार है। देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर और नाग पर आपकी दृष्टि पड़ने से सब खत्म हो जाते हैं। ऐसे शनि देव को मैं प्रणाम करता हूं। हे शनिदेव मैं आपके शरण में आया हूं आप मुझे वरदान दीजिए। 


राजा दशरथ से प्रसन्न हुए थे शनि देव
एक बार राजा दशरथ ने इसी शनि स्तुति का पाठ करके शनिदेव को खुश किया था। जिसके बाद शनि देव ने उन्हें वर देते हुए उनकी इच्छाएं पूछी थीं। अपनी इच्छा बताते हुए दशरथ ने कहा था कि वह देवता, असुर, मनुष्य, पशु, पक्षी, नाग तथा हर एक को पीड़ा देना बंद कर दें। 

राजा दशरथ की बात सुनकर शनिदेव अत्यधिक प्रसन्न हो गए थे और उन्हें यह वरदान दिया था। शनि देव से आज तक किसी ने ऐसा वरदान नहीं मांगा था, यह वरदान मांगने वाले सिर्फ राजा दशरथ थे।


शनि स्तुति से क्या होता है लाभ?
जब शनिदेव ने राजा दशरथ को यह वरदान दिया था तब उन्होंने कहा था कि जो कोई भी इस स्तुति का पाठ करेगा वह शनि के प्रकोप से बचा रहेगा। जिसके भी महादशा, अंतर्दशा, गोचर, लग्न स्थान, द्वितीय, चतुर्थ, अष्टम या द्वादश स्थान में शनि होगा उस इंसान को सुबह जल्दी उठकर तथा स्नान करके इस स्तुति का दिन, दोपहर और शाम को पाठ करना होगा।

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