- कार्तिक मास में पूरे माह व्रत का विधान होता है
- मन और इच्छा शक्ति के अनुसार साधक व्रत का चयन करते हैं
- पूरे मास व्रत के बाद उसका उद्यापन जरूर करना चाहिए
कार्तिक माह में तारा भोजन करने का विधान होता है। पूरे दिन भर व्रती निराहार रहकर रात्रि में तारों को अर्ध्य देकर भोजन करते हैं, इसलिए इसे तारा भोजन के नाम से जाना जाता है। कार्तिक मास के अंतिम दिन व्रत का उद्यापन भी किया जाता है। कार्तिक माह में पूरे मास अपनी इच्छा और शक्ति के अनुसार व्रत का विधान होता है। पूरे मास व्रत के अलग-अलग विधान बताए गए हैं। जो भी मनुष्य को उत्तम लगता है और पूरे माह पालन करने के योग्य लगता है, वह उस नियम के अनुसार ही व्रत रखता है। व्रत के उद्यापन में अपनी श्रद्धानुसार ब्राह्मण को दक्षिणा देने के साथ ही किसी ब्राह्मणी, सास अथवा किसी बुजुर्ग महिला को साड़ी और सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देने का विधान होता है। तो आइए जानें, कार्तिक मास तारा भोजन और पूरे मास में किस तरह के व्रत होते हैं।
कार्तिक मास के संबंध में पुराणों में उल्लेख है जिसमें ब्रह्माजी बताते हैं कि कार्तिक मास के समान कोई मास नहीं, सतयुग के समान कोई युग नहीं, वेदों के समान कोई शास्त्र नहीं और गंगाजी के समान दूसरा कोई तीर्थ नहीं है। साथ ही अन्न दान के बराबर कोई दान नहीं होता।
कार्तिक मास में भगवान राधा-कृष्णा ,पीपल , पथवारी , तुलसी, आंवले ,केले कि पूजा करनी चाहिए। साथ ही रोज पांच पत्थर रखकर पथवारी पूजा, कीर्तन और दीपदान करना चाहिए। साथ ही रोज कार्तिक माहात्म्य सुनना चाहिए।
जानें पूरे कार्तिक मास में तारा भोजन का विधान
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नारायण तारायन : कार्तिक प्रारंभ होने के पहले दिन तारों का अर्ध्य देकर भोजन करें। कार्तिक के दूसरे दिन दोहपर को भोजन करें, तीसरे दिन निराहार व्रत रखें। इस तरह से पूरे कार्तिक मास इस क्रम को पूरा करें। व्रत उद्यापन में चांदी का तारा या 33 पेड़े ब्राह्मण को दान करें। ये व्रत नारायण तारायन कहलाता है।
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तारा भोजन : कार्तिक मास में तारा देखकर भोजन करना तारा करें। रोज दिन भर निराहार रह कर तारा देखने के बाद व्रत खोला जाता है। ये व्रत ही तारा भोजन कहलाता है। बाद में ब्राह्मण को भोजन कराकर चांदी का तारा व 33 पेड़ा दान में देना चाहिए।
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छोटी सांकली : इस व्रत में २ दिन भोजन और एक दिन उपवास रखने का विधान होता है। इस क्रम को पूरे मास किया जाता है। उद्यापन के समय सोने या चांदी की सांकली भगवान के मन्दिर में चढ़ा कर ब्राह्मणों को भोजन खिलाया जाता है।
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एकातर व्रत : इस व्रत में एक दिन भोजन और एक दिन उपवास पूरे मास किया जाता है। अंत में ब्राह्मणों को भोजन खिलाया जाता है और दक्षिणा दी जाती है।
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चंद्रायन व्रत : यह व्रत कार्तिक मास प्रारंभ की पूर्णिमा से कार्तिक की पूर्णमासी तक किया जाता है। इसमें पूर्णमासी को उपवास ,एकम को एक ग्रास , दिवितिया को दो ग्रास और इस तरह प्रतिदिन क्रम बढ़ाकर अमावस्या तक पन्द्रह ग्रास खाने होते हैं। व्रत में आप हलवा बना कर खा सकते हैं। वहीं अमावस्या के दूसरे दिन से एक ग्रास कम करते हुए क्रम में इसे ग्रहण करना होता है। उद्यापन में हवन कराकर ब्राह्मण को जोड़े में भोजन खिलाया जाता है।
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तुलसी नारायण व्रत : इस व्रत को आंवला नवमी से एकादशी तक निराहार किया जाता है। इस व्रत में भगवान विष्णु के समक्ष अखंड ज्योति जलाने, ग्यारस के दिन तुलसी विवाह करने और बारस के दिन ब्राह्मण भोज कराया जाता है।
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अलूना पावंभर खाना : कार्तिक में पूरे मास या पांच दिन या तीन दिन तक बिना नमक का भोजन करना होता है। प्रसाद को भगवान को भोग लगाकर खाया जाता है और लड्डू में रूपये रख कर गुप्त दान करना चाहिए।
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छोटी पंचतीर्थया व्रत : एकादशी से लेकर पूनम तक रोज भगवान का भजन-कीर्तन करना और जितनी देर हो सके व्रत पालन करना चाहिए।
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पंचतीर्थया : एकादशी, ग्यारस, बारस, तेरस, चौदस और पूनम के दिन निराहार व्रत कर ब्राह्मण से हवन कराया जाता है।
कार्तिक मास में आप चाहें जो भी व्रत का चयन करें, लेकिन उद्यापन करते समय जोड़े में ब्राह्मणों को भोजन कराएं और वृद्ध महिला को साड़ी और सुहागन महिला को सुहाग की सामग्री जरूर दें।