- कार्तिक मास में इस व्रत को वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता हैं
- संकष्टी का व्रत पति और संतान के लिए रखा जाता है
- ऊं गं गणपतये नम: का जाप करते हुए दूर्वा अर्पित करें
हिंदू पंचांग के अनुसार हर मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर सकंष्टी व्रत का विधान होता है। हर मास में इसे संकष्टी चतुर्थी के नाम से ही जानते हैं, लेकिन कार्तिक मास में इस व्रत को वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता हैं। इस बार वक्रतुंड संकष्टि व्रत 4 नंवंबर को है और इसी दिन करवा चौथ व्रत भी है।
बुधवार को यह व्रत पढ़ने से इसका महत्व और अधिक हो गया है, क्योंकि बुधवार गणपति जी का ही दिन होता है। संकष्टी का व्रत पति और संतान के लिए रखा जाता है। इस दिन भगवान गणपति की पूजा का विशेष महत्व होता है। बुद्धि, बल, ज्ञान और विवेक के देवता की पूजा से सभी प्रकार की परेशानियां दूर हो जाती हैं।
संकष्टी व्रत संकटों को हराने वाली मानी गई है। तो आइए जानें की वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूजन कैसे करें और इसका क्या महत्व है।
व्रत व पूजन विधि (Vakratund Sankashti Chaturthi 2020 vrat Pooja Vidhi )
व्रत के दिन स्नान कर भगवान गणपति की प्रतिमा को ईशानकोण में चौकी पर स्थापित कर दें। चौकी पर लाल या पीले रंग का आसन भगवान को देना चाहिए। इसके बाद गणपति जी के समक्ष पूजा और व्रत का संकल्प लें और फिर उन्हें जल, अक्षत, दूर्वा घास, लड्डू, पान, धूप आदि अर्पित करें।
ध्यान रहे दूर्वा उनके सिर पर रखें। इसके बाद ‘ऊं गं गणपतये नम:’ मंत्र बोलते हुए गणेश जी को प्रणाम करें और एक थाली या केले का पत्ते पर रोली से त्रिकोण बना लें। त्रिकोण के अग्र भाग पर एक घी का दीपक रखें और नीचे की ओर बीच में मसूर की दाल व सात लाल साबुत मिर्च को रख दें।
पूजा के बाद चंद्रमा को शहद, चंदन, रोली मिश्रित दूध से अर्घ्य दें और लड्डू प्रसाद सभी में बांटे।
वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी का महत्व (Vakratund Sankashti Chaturthi vrat mahatva)
वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी व्रत भगवान श्री गणेश को समर्पित हैं। यह व्रत गजानन की कृपा प्राप्त करने के लिए रखा जाता है। मान्यता है कि जो लोग इस दिन व्रत रखते हैं भगवान गणेश उनके घर-परिवार में शुभता लेकर आते हैं। बताया जाता है कि इस दिन व्रत रखने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।