- जानिए विनायक चतुर्थी के दिन कब निकलेगा चांद
- कार्तिकेय से जुड़ी मानी जाती है व्रत की कथा
- यहां जानिए त्यौहार पर कब निकलेगा चांद और क्या है पौराणिक कथा
भगवान गणेश के प्रति आस्था रखने वाले लोग महीने में दो बार चंद्र दिन की चतुर्थी तिथि को एक दिन का व्रत रखते हुए पूजा करते हैं। कृष्ण पक्ष चतुर्थी पर किया जाने वाला व्रत संकष्टी चतुर्थी के रूप में प्रचलित है। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर मनाया जाने वाला दिन विनायक चतुर्थी कहलाता है। इस दिन रखा गया उपवास रात में चंद्रमा को देखने के बाद ही तोड़ा जाता है।
विनायक चतुर्थी का शुभ मुहूर्त (Vinayak Chaturthi Shubh Muhurat):
विनायक चतुर्थी जनवरी 2021 में 16 जनवरी, शनिवार को सुबह 07 बजकर 27 मिनट से प्रारंभ हो रही है और 17 जनवरी, रविवार सुबह 08 बजकर 08 मिनट पर चतुर्थी तिथि का समापन होगा। विनायक चतुर्थी की पूजा का शुभ मुहूर्त 16 जनवरी यानी शनिवार को सुबह 11 बजकर 27 मिनट से दोपहर 01 बजकर 35 मिनट तक है। बता दें कि यह पूजा दोपहर में करने का विधान होता है।
विनायक चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा (Vinayak Chaturthi Vrat katha):
एक बार माता पार्वती ने शिवजी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा हुई। शिवजी भी इसके लिए मान गए और चौपड़ खेलना शुरू किया लेकिन इस खेल में मुश्किल यह थी कि हार-जीत का फैसला कौन करेगा। इसके लिए घास-फूस से एक बालक बना दिया गया और साथ ही उसमें प्राण प्रतिष्ठा भी कर दी और कहा कि तुम हार-जीत का फैसला करना।
इसके बाद तीन बार माता पार्वती खेल में जीतीं लेकिन बालक ने कहा कि महादेव शिव जीते हैं। इस पर माता पार्वती को बहुत क्रोध आया और उस बालक को कीचड़ में रहने का श्राप उन्होंने दे दिया। बालक के माफी मांगने पर माता पार्वती ने कहा कि एक साल बाद नागकन्याएं इस जगह आएंगी और उनके बताए अनुसार गणेश चतुर्थी का व्रत करने से तुम्हारे कष्ट दूर होंगे।
इसके बाद उस बालक ने गणेश जी की उपासना की और भगवान गणेश इससे प्रसन्न हो गए। गणेशजी ने उसे अपने माता-पिता यानी भगवान शिव-पार्वती को देखने के लिए उन्हें कैलाश जाने का वरदान दिया।
यह बालक यहां से कैलाश पहुंच गया। इस बीच वहां माता पार्वती को मनाने के लिए शिवजी ने भी 21 दिन तक गणेश व्रत किया था और पार्वतीजी मान भी गईं। इसके बाद माता पार्वती ने भी अपने बनाए पुत्र से मिलन के लिए 21 दिन तक व्रत रखा और उनकी यह इच्छा पूरी हो गयी। ऐसा कहा जाता है कि वो बालक भगवान कार्तिकेय हैं।