- धरती की रक्षा के लिए देवी पार्वती ने लिया था मां अन्नपूर्णा का रूप।
- मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है अन्नपूर्णा जयंती।
- इस दिन अन्न दान का बहुत महत्व माना गया है।
अन्न की देवी मां अन्नपूर्णा को माना गया है। अन्नपूर्णा जयंती पर ही देवी पार्वती ने मां अन्नपूर्णा का रूप धारण किया था। यही कारण है कि मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को अन्नपूर्णा जयंती के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार पृथ्वी पर अन्न की कमी हो गई और प्राणी अन्न को तरसने लगे थे, तब देवी पार्वती अन्न की देवी के रूप में धरती पर प्रकट हुई थीं। देवी ने समस्त प्राणियों के लिए धरती पर अन्न की व्यवस्था की थी इसलिए उन्हें देवी अन्नपूर्णा के रूप में पूजा जाने लगा। एक अन्य कथा के अनुसार अन्न की कमी को देखते हुए भगवान शिव ने प्राणियों की रक्षा के लिए भिक्षुक का रूप धारण किया था और तब देवी पार्वती अन्न की देवी बन कर धरती पर प्रकट हुई थीं। इसलिए इस दिन को अन्नपूर्णा जयंती के रूप में विधि-विधान से मनाया जाता है। इस दिन पूजा-अर्चना कर अन्न की देवी के प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है। साथ ही व्रत का पालन कर इस दिन अन्न दान किया जाता है।
अन्नपूर्णा जयंती पर व्रत और पूजा करने से मनुष्य के घर अन्न-धन की कभी कमी नहीं होती और सुख-वैभव के साथ ही ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
अन्नपूर्णा जयन्ती शुभ मुहूर्त (Annapurna Jayanti Subh Muhurat)
अन्नपूर्णा जयन्ती बुधवार, दिसम्बर 30, 2020 को मनाई जाएगी।
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - दिसम्बर 29, 2020 को 07:54 बजे।
पूर्णिमा तिथि समाप्त - दिसम्बर 30, 2020 को 08:57 बजे
अन्नपूर्णा जयन्ती पूजा विधि (Annapurna Jayanti Puja Vidhi)
अन्नपूर्णा जयंती के सूर्योदय से पूर्व उठ जाएं और सूर्य को जल अर्पित कर व्रत और पूजा का संकल्प लें। इसके बाद पूजा स्थल को साफ कर गंगाजल का छिड़काव कर लें। इस दिन रसोईघर की स्नान से पूर्व अच्छे से सफाई कर लें और वहां भी गंगाजल का छिड़काव करें। इसके बाद गुलाबजल का छिड़काव करें। अब जिस चूल्हे पर आपको भोजन बनाना है उस पर हल्दी, कुमकुम, चावल, पुष्प, धूप और दीपक से पूजन कर लें। इसके बाद मां अन्नापूर्णा की प्रतिमा या तस्वीर को किसी चौकी पर स्थापित करें। फिर एक सूत का धागा लेकर उसमें 17 गांठे लगा लें और उस धागे पर चंदन और कुमकुम लगाकर मां अन्नापूर्णा की तस्वीर के समक्ष रख दें। इसके बाद 10 दूर्वा और 10 अक्षत अर्पित करें। इसके बाद मां अन्नापूर्णा की धूप व दीप आदि से विधिवत पूजा करें और देवी से प्रार्थना करें कि, हे मां मुझे धन, धान्य, पशु पुत्र, आरोग्यता ,यश आदि सभी कुछ दें। इसके बाद पुरुष इस धागे को दाएं हाथ की कलाई पर और महिला इस धागे को बाएं हाथ की कलाई पर पहन लें। इसके बाद मां अन्नपूर्णा की कथा सुने। फिर बनाए गए प्रसाद का भोग लगाएं और 17 हरे धान के चावल और 16 दूर्वा लेकर मां अन्नापूर्णा की प्रार्थना करें और कहें, हे आप तो सर्वशक्तिमयी हैं, इसलिए सर्वपुष्पयी ये दूर्वा आपको समर्पित है। इसके बाद किसी निर्धन व्यक्ति या ब्राह्मण को अन्न का दान अवश्य करें।
अन्नपूर्णा जयन्ती का महत्व (Annapurna Jayanti Ka Mahatva)
अन्नपूर्णा जयन्ती मागर्शीष मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाई जाती है। जब पृथ्वीं पर लोगों के पास खाने के लिए कुछ नहीं था तो मां पार्वती ने अन्नापूर्णा का रूप रखकर पृथ्वीं को इस संकट से निकाला था। अन्नपूर्णा जयन्ती का दिन मनुष्य के जीवन में अन्न के महत्व को दर्शाता है। इस दिन रसोई की सफाई और अन्न का सदुपयोग बहुत जरूरी होता है। माना जाता है कि इस रसोई की सफाई करने और अन्न का सदुपयोग करने से मनुष्य के जीवन में कभी भी धन धान्य की कमीं नही होती। इसलिए अन्न का सदुपयोग अवश्य करना चाहिए।
अन्नापूर्णा जयंती के दिन मां पार्वती के अन्नापूर्णा स्वरूप की पूजा करने से घर में कभी भी अन्न की कोई कमीं नही होती। जो भी व्यक्ति इस दिन मां अन्नपूर्णा का आराधना करता है। उसे मां का आर्शीवाद अवश्य प्राप्त होता है। इस दिन अन्न दान को भी विशेष माना जाता है। यदि इस दिन कोई व्यक्ति अन्न का दान करता है तो उसे न केवल इस जन्म में बल्कि अगले जन्म में भी धन और धान्य की कभी कोई कमीं नही होती। इसलिए यह दिन मां अन्नापूर्णा की आराधना के लिए विशेष माना जाता है।
अन्नपूर्णा जयन्ती की कथा (Annapurna Jayanti Ki Katha)
एक बार पृथ्वी अचानक से बंजर हो गई थी और अन्न से लेकर जल तक का अकाल पड़ गया। पृथ्वी पर जीवों के सामने जीवन संकट आ गया। तब पृथ्वीं पर लोग ब्रह्मा जी और विष्णु की आराधना करने लगे। ऋषियों ने ब्रह्म लोक और बैकुंठ लोक जाकर इस समस्या हल निकालने के लिए ब्रह्मा जी और विष्णु जी से कहा। जिसके बाद ब्रह्मा जी और विष्णु जी सभी ऋषियों के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंचे।सभी ने भगवान शिव से प्रार्थना की हे प्रभू पृथ्वीं लोक बड़े ही संकट से गुजर रहा है। इसलिए अपना ध्यान तोड़िए और जाग्रत अवस्था में आइए। तब शिव आंखे खोलकर सभी के आने का कारण पूछा। तब सभी ने बताया की पृथ्वीं लोक पर अन्न और जल की कमीं हो गई है। तब भगवान शिव ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा कि आप लोग धीरज रखिए।इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती ने पृथ्वीं लोक का भ्रमण किया। जिसके बाद माता पार्वती ने अन्नापूर्णा रूप और भगवान शिव ने एक भिक्षु का रूप ग्रहण किया। इसके बाद भगवान शिव ने भिक्षा लेकर पृथ्वींवासियों में वितरित किया। जिसके बाद पृथ्वीं पर अन्न और जल की कमी दूर हो गई और समस्त प्राणी देवी की जय- जयकार कर उठे।