- दशहरे पर होने वाली शस्त्र पूजा को आयुध पूजा कहते हैं
- इस दिन शस्त्र, गाड़ी, कलम आदि उपकरणों की पूजा होती है
- पूजा, कार्य में सफलता पाने की कामना के साथ की जाती है
अश्वनि पक्ष की विजयादशमी के दिन हर जगह भगवान श्रीराम की पूजा के साथ तीन प्रमुख देवियों की पूजा भी की जाती है। साथ ही इस दिन सफलता की कामना लेकन अस्त्र-शस्त्र पूजन भी किया जाता है। भगवान श्रीराम ने भी रावण के वध से पहले देवी पूजा के साथ अपने शस्त्र की पूजा की थी। यह पूजा सफलता की कामना के लिए उन्होंने की थी। बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न दशहरा न केवल मानव जाति को एक सीख देता है, बल्कि यह भी बताता है कि दैवीय शक्तियां केवल सच्चाई का साथ देती हैं। दशहरे भगवान श्रीराम, तीन देवियों और शस्त्र पूजन कब, कैसे और क्यों शुरू हुआ और इसकी पूजा विधि क्या है, आइए जानें।
उत्तर-पूर्वी भारत में दशहरे के दिन सरस्वती पूजा (Saraswati Puja) दक्षिण में आयुध पूजा और कोलकाता में काली पूजा का विधान है। इस दिन शस्त्र, यंत्र और वाहन और उपकरण पूजा का भी विशेष महत्व माना गया है। नौ दिन की शक्ति उपासना के बाद जिस तरह से भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्ति की थी, उसी तरह लोग भी अपने अस्त्र-शस्त्र और उपरकण की पूजा कर विजय कामना करते हैं। आयुध पूजा मुख्य रूप से कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल में होती हैं और यही पूजा उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में सरस्वती पूजा के नाम से जानी जाती है। दोनों ही पूजा समान होती है, बस इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। कई स्थानों पर आयुध पूजा को शस्त्र पूजा या अस्त्र पूजा के नाम से भी जाना जाता है। मुख्यत: इस दिन लोग अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं।
अस्त्र-शस्त्र ही नहीं इनकी पूजा का भी है विधान (Shastra Pujan On Dussehra)
दहशरे पर केवल अस्त्र-शस्त्र ही नहीं कागज, कलम, उपकरण, वाहन या सामान की भी पूजा होती है। इस दिन लोग जिस भी कार्य से जुड़े होते हैं, उसकी पूजा करते हैं। दक्षिण भारत में विश्वकर्मा पूजा के समान वहां के लोग अपने उपकरणों और शस्त्रों की पूजा करते हैं।
पूजा से पूर्व होती है विशेष सफाई
पूजा से पूर्व अस्त्र-शस्त्र, उपकरण या जिस चीज की भी पूजा करनी है, उसकी सफाई की जाती है। घर, दुकान और दफ्तरों की सफाई के बाद पूजा की जाती है। वहीं छात्र भी इस दिन अपनी कॉपी-किताब की पूजा करते हैं।
विशेष साज-सज्जा के साथ होती है पूजा (Ayudha Puja Vidhi)
आयुध पूजा के दिन जिस भी चीज की पूजा की जाती है, उसे भगवान के सामान आदर भाव से पूजा जाता है। शस्त्र-अस्त्र या उपकरण और वाहन को सजा कर उस पर रोली-सिंदूर लगाया जाता है। इसके बाद माला, आम के पत्तें और केले के पौधे के साथ शमी की पत्तियां सजाई जाती हैं। फिर स्वास्तिक बना कर धूप-दीप और अगरबत्ती दिखा कर ईश्वर से कार्य में सफलता की कामना की जाती है। इसके बाद प्रसाद चढ़ाया जाता है।
ऐसे शुरू हुई आयुध पूजा (How Ayudha Puja was started)
दशहरा और दुर्गा पूजा दोनों ही असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न है। आयुध पूजा या सरस्वती पूजा कैसे शुरू हुई यह जानना जरूरी है। प्राचीन काल में राज्यों के बीच होने वाले युद्ध बरसात में नहीं हुआ करते थे। बरसात के बाद युद्ध होने की संभावना बनी रहती थी। इसलिए लोग इस समय में अपने हथियार और उपकरण का धार और शक्ति को जांचते थे। उसके युद्ध लायक तैयार करते थे। शस्त्र को लोग पूजते थे। ऐसे आयुध पूजा की शुरुआत हुई। वहीं एक मान्यता यह भी है कि जिस तरह से भगवान श्रीराम ने नौ दिन तक शक्ति पूजा के बाद लंका पर विजय प्राप्त की थी और रावण वध किया था, उसी तरह लोग भी बुराई पर अच्छाई और अपने विकास के लिए अपने और अपने काम से जुड़े उपकराणों की पूजा कर सफलता की कमाना करते हैं।
सरस्वती, लक्ष्मी और देवी पार्वती जाती हैं पूजी
आयुध पूजा पर ज्ञान,संगीत और बुद्धि की देवी सरस्वती की पूजा, धन की देवी लक्ष्मी और दिव्य स्वरूप में मां पार्वती की पूजा की जाती है। बंगाल में दशहरे पर काली पूजा होती है।