- रावण ब्रह्माजी का पड़पौत्र था, उसके दादा जी ब्रह्मा के पुत्र थे
- रावण किसी स्त्री को छूता तो उसका विनाश हो सकता था
- रावण महाज्ञानी और महान संगीतज्ञ भी था
दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न होता है। इस दिन रावण के साथ उसके दो भाईयों को भगवान श्रीराम ने वध किया था। उसी के उल्लास में जगह-जगह रामलीलाएं होती हैं और रावण को जलाया जाता है। हालांकि, यह बात सत्य है कि रावण प्रगाढ़ ज्ञानी था, लेकिन अंहकार के कारण उसका ज्ञान उसे अंत की ओर ले गया। रावण को हिंदू समाज में खलनायक की तरह माना गया है, लेकिन अपने ही देश में एक जगह ऐसी है जहां रावण को जलाया नहीं जाता, बल्कि उसकी पूजा की जाती है। यही नहीं, रावण से जुड़े कई ऐसे अद्भुत तथ्य हैं जो शायद ही आप जानते होंगे। लंकाधिपति रावण ज्ञानी ही नहीं संगीतज्ञ भी था और उसे आदर्श पति की संज्ञा भी दी गई है। रावण के दस सिर के पीछे क्या कहानी थी और ब्रह्मा जी से उसका क्या वास्ता था आइए ऐसी ही कई रहस्यमय बातें जानें।
लंकाधिपति रावण को दशानन भी कहते है। रावण लंका का तमिल राजा था। वाल्मीकि रामायण महाकाव्य में रावण का सबसे प्रमाणिक इतिहास मिलता है। रामायण के अलग-अलग भागों से संग्रहित रावण से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारें में आइए बताएं।
1. रावण ब्रह्माजी का पड़पौत्र था
रावण के दादाजी का अनाम प्रजापति पुलत्स्य था और वह ब्रह्मा जी के पुत्र थे। ब्रह्मा जी के 10 पुत्र थे। इस आधार पर रावण ब्रह्मा जी का पडपौत्र था, जबकि उसके पिता और दादा दोनों ही धर्म की राह पर ही चले थे।
2. ‘रावण संहिता’ का रचयिता रावण था
ज्योतिष शास्त्र में रावण संहिता को बहुत ही उत्तम और महत्वपूर्ण पुस्तक माना गया है। इस पुस्तक का रचयिता खुद रावण था। वह विख्यात महापंडित और ज्ञानी था, इसलिए जब रावण मृत्यु शय्या पर था तब श्रीराम ने लक्ष्मण जी को उसके पास बैठने को कहा था, ताकि वह मरने से पहले लक्ष्मण को अपनी ज्ञान के पिटारे से कुछ दे सके।
3. रावण ने किया था भगवान राम के लिए यज्ञ
रावण ने एक बार भगवान राम के लिए यज्ञ किया था। हालांकि ये यज्ञ वह भगवान राम की भलाई के लिए नहीं बल्कि अपने लिए किया था। जब भगवान लंका तक पहुचने के लिए पुल बना रहे थे तब शिवजी का आशीर्वाद पाने से पहले उसको भगवान श्रीराम जी का आराधना करनी पड़ी थी। रावण तीनों लोकों का स्वामी था। उसने इंद्र तक का सिहांसन छीन लिया था।
4. रावण को वीणा बजाने में थी महारत
रावण एक संगीतज्ञ भी था। उसे वीणा बजाने में महारत हासिल थी। रावण को संगीत का बहुत शौक था। पौराणिक कथा बताती है कि रावण इतनी मधुर वीणा बजाता था कि देवता भी उसका संगीत सुनने के लिए धरती पर आ जाते थे।
5. शनिदेव को रावण ने बनाया था बंधक
रावण बेहद शक्तिशाली था और उसने नवग्रहों को अपने अधिकार में ले लिया था। जब मेघनाथ का जन्म हुआ था, तब रावण ने ग्रहों को 11वे स्थान पर रहने को कहा था, ताकि उसे अमरता मिल सके, लेकिन शनिदेव ने ऐसा करने से मना कर दिया और 12वे स्थान पर विराजमान हो गये। मेघनाथ के जन्म के समय शनि की ये कृत्य रावण को नागवार गुजरी और उसे शनिदेव पर आक्रमण कर उन्हें बंदी बना लिया था। रावण ये जनता था कि उसकी मौत विष्णु के अवतार के हाथों होगी और ये उसके मोक्ष का कारक होगा।
6. रावण के दस सिरों के पीछे है पौराणिक कथा
रावण के 10 सिर के बारे में दो मत हैं। पहले मतल के अनुसार रावण के दस सिर नहीं थे। उसके गले में पड़ी 9 मोतियों की माला से एक भ्रम पैदा होता था कि उसके 10 सिर है। ये माला उसे, उसकी मां ने दिया था। दूसरे मतानुसार जब रावण शिवजी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप कर रहा था, तब रावण ने खुद अपने सिर को धड से अलग कर दिया था और शिवजी उसकी ये भक्ति देख इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने उसके हर हर टुकड़े से एक सिर बना दिया था।
7. शिवजी ने दिया रावण को उसका नाम
शिवजी ने ही लंकाधिपति को रावण नाम दिया था। रावण शिवजी को कैलाश से लंका ले जाना चाहता था, लेकिन शिवजी जब राजी नहीं हुए तो वह कैलाश पर्वत को ही उठाने लगा। तब शिवजी ने अपना एक पैर कैलाश पर्वत पर रख दिया, जिससे रावण की अंगुली दब गई। दर्द के मारे रावण कराह उठा और शिवजी को से क्षमा मांगने लगा और इसी दौरान उसने शिव तांडव की रचना की। शिवजी को ये बहुत अजीब लगा कि दर्द में होते हुए भी उसने शिव तांडव गा रहा है तो उन्होंने तब उसे उसका नाम रावण रखा। इसका अर्थ था, जो तेज आवाज में दहाड़ता हो |
8. एक यज्ञ जिससे हो सकती थी रावण की जीत
रावण जब युद्ध में हार रहा था तब उसने यज्ञ करने का निश्चय किया। इस यज्ञ से तबाही और तूफान आ सकता था, लेकिन इस यज्ञ को पूरा करने के लिए उसे पूरे यज्ञ के दौरान एक जगह बैठना जरूरी था। जब ये बात भगवान राम को पता चली तो उन्होंने बाली पुत्र अंगद को रावण का यज्ञ में बाधा डालने के लिए भेजा, लेकिन तमाम प्रयास के बाद भी अंगद यज्ञ में बाधा डालने में सफल नहीं हुए तब उन्हें मंदोदरी का ध्यान आया। अंगद ने मंदोदरी को घसीटना शुरू किया कि यह देख रावण ये देखकर अपना स्थान छोड़ देगा लेकिन वो नहीं हिला। तब मन्दोदरी रावण के सामने चिल्लाई और उसका तिरस्कार किया और राम जी का उदाहरण देते हुए कहा की “एक राम हैं, जिन्होंने अपनी पत्नी के लिए युद्ध किया और दूसरी तरह आप, जो अपनी पत्नी को बचाने के लिए अपनी जगह से नही हिल सकते।” यह सुनकर अंत में रावण उस यज्ञ को पूरा किए बिना ही वहां से उठ गया और यज्ञ असफल हो गया।
9. पूर्वजन्म में रावण-कुंभकर्ण थे भगवान विष्णु के द्वारपाल
रावण और कुंभकर्ण पूर्वजन्म में भगवान विष्णु भगवान के द्वारपाल जय और विजय थे जिनको एक ऋषि से मिले श्राप के कारण राक्षस कुल में जन्म लेना पड़ा था और अपने ही आराध्य से उनको लड़ना पड़ा।
10. एक श्राप की वजह से नही कर सका रावण माता सीता को स्पर्श
ऐसा कहा जाता है कि रावण महिलाओं के प्रति बहुत जल्द आसक्त होता था। एक बार जब वह नालाकुरा की पत्नी को अपने वश में करने की कोशिश कर रह था तब उन्होंने उसे श्राप दिया था कि वह जीवन किसी भी स्त्री को उसकी इच्छा के बिना स्पर्श नहीं कर सकेगा और ऐसा करने का प्रयास किया तो उसका विनाश हो जाएगा। यही कारण है कि वह देवी सीता को छून नहीं सका था।
11. रावण था एक आदर्श पति और आदर्श भ्राता
रावण एक आदर्श भाई और पति था। वह अपनी बहन का अपमान नहीं सह सका था और वहीं वह अपनी पत्नी का भी बहुत सम्मान करता था। अपनी पत्नी को बचाने के लिए उस यज्ञ से उठ गया, जिससे वो राम जी की सेना को तबाह कर सकता था।
12. लाल किताब का असली लेखक है रावण
लाल किताब का असली लेखक रावण को माना जाता था। रावण अपने अहंकार की वजह से अपनी शक्तियों को खो बैठा था और उसने लाल किताब का प्रभाव खो दिया था, जो बाद में अरब में पाई गई और इसे उर्दू और पारसी में अनुवाद किया गया था।
13. कई स्थानों पर आज भी होते है रावण की पूजा
दक्षिणी भारत और दक्षिण पूर्वी एशिया के कई हिस्सों में रावण की पूजा की जाती है। कानपुर में कैलाश मन्दिर में साल में एक बार दशहरे के दिन खुलता है, जहां रावण की पूजा होती है। इसके अलावा रावण को आंध्रप्रदेश और राजस्थान के भी कुछ हिस्सों में पूजा जाता है।
रावण अपने अहंकार के कारण अपने ज्ञान और बुद्धि का नाश कर लिया था, वरना वह महान पंडित, ज्ञाता और बलशाली था।