- 23 अगस्त को रखा जाएगा अजा एकादशी का व्रत
- अजा एकादशी व्रत से अश्वमेध यज्ञ के समान मिलता है फल
- अजा एकादशी व्रत के दिन जरूर सुनें राजा हरिश्चन्द्र से जुड़ी कथा
Aja Ekadashi Puja Vrat Katha Importance: हिंदू पंचांग के अनुसार अजा एकादशी का व्रत प्रत्येक साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। इस बार अजा एकादशी का व्रत मंगलवार 23 अगस्त 2022 को रखा जाएगा। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि अजा एकादशी का व्रत रखने और पूजन करने से अध्वमेध यज्ञ के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है। साथ ही अजा एकादशी के दिन पूजन के समय व्रत कथा सुनने से पूजा सफल होती है और व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है। इसलिए यह व्रत अत्यंत फलदायी माना जाता है। जानते हैं अजा एकादशी की व्रत कथा और इसके महत्व के बारे में।
अजा एकादशी व्रत कथा
कथा के अनुसार, अयोध्या में चक्रवर्ती राजा हरिश्चन्द्र नाम के एक राजा थे। राजा अपनी सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे। एक बार सभी देवताओं ने राजा की परीक्षा लेने का विचार किया। राजा को स्वप्न आया कि उसने ऋषि विश्वामित्र को अपना राजपाट सबकुछ दान कर दिया। सुबह विश्वामित्र सच में उनके द्वार पर आए और कहने लगे कि तुमने स्वप्न में मुझे अपना राजपाट दान कर दिया है। राजा ने अपनी सत्यनिष्ठ का पालन किया और पूरा राज्य विश्वामित्र को दे दिया। इतना ही नहीं दान के लिए दक्षिणा चुकाने हेतु राजा को पूर्व जन्म के कर्म फल के कारण पत्नी, बेटा और खुद को भी बेचना पड़ा। हरिश्चन्द्र ने खुद को भी बेच दिया और एक चांडाल के पास नौकरी कर जीवन यापन करने लगा। लेकिन उसने सत्य का मार्ग नहीं छोड़ा।
इसी तरह सत्यनिष्ठा का पालन करते हुए कई साल बीत गए। राजा को एक दिन अपनी हालत पर दुख हुआ और वह सोचने लगा कि मैं क्या करूँ? कैसे इस कर्म से मुक्ति पाऊं? राजा इस बारे में चिंतन कर रहा था तभी उसके पास गौतम ऋषि पहुँचे। राजा हरिश्चन्द्र ने ऋषि को अपने दुख की व्यथा सुनाई।
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महर्षि गौतम को राजा की बातें सुनकर दुख हुआ। वे राजा से बोले, हे राजन! तुम भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन अजा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो और रात्रि जागरण करो। इससे तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे। यह कहकर ऋषि वहां से आलोप हो गए। भाद्रपद माह में अजा एकादशी आने पर राजा ने व्रत रखा और रात्रि जागरण किया। व्रत के प्रभाव से राजा के पाप नष्ट हो गये। राजा को पुन: उसके परिवार और राजपाट की प्राप्ति हो गई।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)