- गणपति जी की स्तुति करने से दूर होते हैं संकट
- गणपति जी के समक्ष वनस्पति चढ़ाकर करें स्तुति का पाठ
- दूर्वा चढ़ाते हुए जरूर पढ़ना चाहिए अर्पित मंत्र
भगवान गणपति की पूजा किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले की जाती है और यही कारण है कि वह विघ्नहर्ता और शुभकर्ता कहे जाते हैं। यानी मनुष्य के कार्य पर आने वाली विपदाओं को वह हर कर उसे शुभता प्रदान करते हैं। बुधवार के दिन गणपति की विशेष पूजा की जाती है। हालांकि हर पूजा से पूर्व गणपति जी की पूजा अनिवार्य होती है। इसलिए यदि आप भगवान की पूजा रोज विधिवत तरीके से न भी कर सकें तो उनकी पूजा में दो विशेष काम हमेशा करें।
पहला उनके समक्ष फूल के साथ दूर्वा अर्पित करें और दूसरा उनका स्मरण करते हुए उनकी स्तुति का जाप कर लें। भगवान गणपति की स्तुति में से उनकी पूजा का संपूर्ण लाभ आपको मिल जाएगा।
यदि आप गणपति जी हो दूर्वादल चढ़ाकर पूजा पूर्ण समझते हैं तो यह आपकी भूल है। दूर्वा चढ़ाते हुए दूर्वा अर्पित मंत्र का जाप जरूर करें। ये मंत्र है 'गजमुखाय नम:।' इसके साथ ही गणपति जी को प्रसन्न करने के लिए कुछ वनस्पतियों को भी चढ़ाने का विधान है। भगवान को बेलपत्र, धतूरा और सेम का पत्ता भी चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि जो वनस्पति उनके पिता शिवजी को पसंद हैं, वह गणपति जी को भी पसंद होते हैं। यदि आप उनकी पूजा में वनस्पति चढ़ाने के बाद उनकी स्तुति का पाठ कर लें तो आपको सर्वोत्तम पुण्यलाभ की प्राप्ति होगी।
भगवान गणपति की स्तुति किसी भी समय की जा सकती हैं, लेकिन इसे करने से पूर्व गणपति जी के समक्ष एक घी का दीपक जला दें और वहीं उनका स्मरण करते हुए स्तुति करें। तो आइए आज आपको श्रीमद् शंकराचार्य द्वारा लिखित श्री गणेश की स्तुति का ज्ञान कराएं।
गणपति स्तुति
मुदा करात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं कलाधरावतंसकं विलासिलोकरञ्जकम्।
अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ।। १।।
नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं नमत्सुरारिनिर्जकं नताधिकापदुद्धरम् ।
सुरेश्वरमं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ।। २।।
समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं नमस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ।। ३।।
अकिंचनार्तिमार्जनं चिरंतनोक्तिभाजनं पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् ।
प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणं कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ।।४।।
नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजमचिन्त्यरुपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम्।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि संततम् ।। ५।।
महागणेश पञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं प्रगायति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ।। ६।।
मंगलमुर्ती मोरया||
यदि आपके पास समय नहीं तो आप गणपति जी का ध्यान कर कहीं पर भी इस स्तुति का पाठ कर लें। इससे आपके सौभाग्य के रास्ते खुल जाएंगे।