- लॉकडाउन के कारण नहीं निकलेगी भगवान की यात्रा
- मंदिर के पुजारी ही करेंगे प्रभु की पूजा से जुड़े विधि-विधान
- मंदिर ध्वज से लेकर रसोईघर तक में है, कुछ खास बात
पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर अपनी आस्था और भक्ति के लिए ही नहीं बल्कि कई अन्य आश्चर्यजनक तथ्यों के कारण भी विश्व प्रसिद्ध है। 9 दिन तक चलने वाली भगवान जगन्नाथ की यात्रा में उनका रथ खीचने के लिए भक्तों की भारी भीड़ जमा होती है। हालांकि इस बार सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना संक्रमण के कारण इस यात्रा पर रोक लगा दी है। अब भक्त घरों में भगवान जगन्नाथ की पूजा करेंगे। वहीं मंदिर में केवल पुजारी ही प्रभु की पूजा से जुड़ी सारे रीति रिवाज को करेंगे। भगवान जगन्नाथ का मंदिर अपने आप में कई आश्चर्यजनक रहस्य को समेटे हुए है। यहां कुछ ऐसे तथ्य और राज हैं, जो प्रभु की लीला की ओर इशारा करते हैं। तो आइए भगवान जगन्नाथ के इस मंदिर के कुछ रोचक तथ्यों के बारे में जानें।
Jagannath Temple of Puri : Interesting Facts / Rochak tathya
- जगन्नाथ मंदिर वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर माना जाता है और ये इस सम्प्रदाय का सबसे प्रमुख मंदिर है। इस मंदिर में भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। भगवान जगन्नाथ इस मंदिर में अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ विराजन हैं।
- जगन्नाथ मंदिर का गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय से खास संबंध रहा है। गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के संस्थापक श्री चैतन्य महाप्रभु भगवान जगन्नाथ की नगरी पुरी में कई साल तक रहे थे और यही कारण है कि इस मंदिर का खास महत्व है।
- 400,000 वर्ग फुट में फैले इस मंदिर के शिखर पर चक्र और ध्वज स्थित हैं। सुदर्शन चक्र का और लाल ध्वज का मंदिर में खास महत्व है। इस चक्र और लाल ध्वज इस बात का प्रतीक हैं की भगवान जगन्नाथ मंदिर के अंदर विराजमान हैं। अष्टधातु से निर्मित इस चक्र को नीलचक्र भी कहा जाता है।
- इस विशाल मंदिर का निर्माण कलिंग शैली में बना है। मंदिर का कार्य कलिंग राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने शुरू कराया था। बाद में अनंग भीम देव ने इसे वर्तमान स्वरुप दिया था।
- मंदिर के शीर्ष पर लगा ध्वज हमेशा हवा के विपरीत लहराता है।
- जगन्नाथ पुरी में कहीं से भी मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखा जा सकता है।
- मान्यता है कि मंदिर के ऊपर से कभी कोई भी पक्षी या विमान नहीं उड़ पाता है।
- मंदिर का रसोईघर भी आश्चर्य से भरा है। मंदिर के रसोईघर में चूल्हे पर एक के ऊपर एक 7 बर्तन रख कर प्रसाद तैयार किया जाता है और आश्चर्य की बात ये है कि प्रसाद सबसे ऊपर वाले बर्तन का पहले तैयार होता है।
- बताया जाता है कि इस मंदिर में भक्तों के लिए बनने वाला प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता है। मंदिर में वर्ष भर सामान्य मात्रा में ही प्रसाद बनाया जाता है, लेकिन भक्तों की संख्या 1000 हो या एक लाख प्रसाद किसी को कम नहीं पड़ता। मंदिर का कपाट बंद होते ही बचा हुआ प्रसाद खत्म हो जाता है। 500 रसोइए अपने 300 सहयोगियों के साथ प्रसाद बनाते हैं।
बता दें कि भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा, इस मंदिर के मुख्य देव हैं। इनकी मूर्तियां, एक रत्न मण्डित पाषाण चबूतरे पर गर्भ गृह में स्थापित हैं। इतिहास अनुसार इन मूर्तियों की अर्चना मंदिर निर्माण से कहीं पहले से की जाती रही है। सम्भव है, कि यह प्राचीन जनजातियों द्वारा भी पूजित रही हों।