- शिवरात्रि से शुरू हो रहे कुंभ मेले में सबसे अधिक महत्व होता है शाही स्नान का।
- शाही स्नान के समय करीब तेरह अखाड़ों के साधु संत उस पवित्र नदी में स्नान करते हैं।
- शाही स्नान परंपरा की शुरुआत 14वीं से 16वीं सदी के बीच हुई थी।
नई दिल्ली. 11 साल बाद हो रहे कुंभ मेले की तैयारियां जोर-शोर से चल रही है। शिवरात्रि से शुरू हो रहे कुंभ मेले में सबसे अधिक महत्व होता है शाही स्नान का। इस साल शाही स्नान 11 मार्च को है। वहीं, मकर सक्रांति के मौके पर पहला मुख्य स्नान पड़ रहा है।
शाही स्नान के समय करीब तेरह अखाड़ों के साधु संत उस पवित्र नदी में स्नान करते हैं जिसके किनारे पवित्र कुंभ मेले का आयोजन होता है। शाही स्नान की परंपरा सदियों पुरानी है लेकिन यह परंपरा वैदिक नहीं है।
मान्यताओं के अनुसार शाही स्नान परंपरा की शुरुआत 14वीं से 16वीं सदी के बीच हुई थी। इस समय देश में मुगल शासक आने शुरु हो गए थे। धीरे-धीरे साधु इन शासकों को लेकर उग्र होने लगे और उनसे संघर्ष करने लगे।
कैसा होता है शाही स्नान
शासकों ने साधुओं के साथ बैठक करके काम का बंटवारा और झंडे का बंटवारा किया। साधु को सम्मान देने और उन्हें खास महसूस कराने के लिए उन्हें पहले स्नान का अवसर देने का निश्चय किया गया।
शाही स्नान के दौरान साधु-संत हाथी-घोड़ो सोने-चांदी की पालकियों पर बैठकर स्नान करने के लिए पहुंचते हैं। एक खास मुहूर्त से पहले साधु तट पर इकट्ठा होते हैं और जोर-जोर से नारे लगाते हैं।
इन तारीखों में होगा शाही स्नान
कुंभ में इस साल चार शाही स्नान है। पहला शाही स्नान 11 मार्च यानी शिवरात्रि को है। वहीं, दूसरा शाही स्नान 12 अप्रैल सोमवती अमावस्या को है। तीसरा मुख्य शाही स्नान 14 अप्रैल मेष संक्रांति के दिन है।
चौथा शाही स्नान 27 अप्रैल को बैसाख पूर्णिमा के दिन होगा। वहीं, मकर संक्रांति पर मकर राशि में पांच ग्रह एक साथ विराजमान होगा। ये ग्रह हैं- सूर्य, शनि, बृहस्पति, बुध। इसके अलाव चंद्रमा गोचर रहेगा। इससे पांच ग्रहों का संयोग बनेगा।