- सोमवार का व्रत करने से पूरी होती हैं कामनाएं
- माता पार्वती और भगवान शिव करते हैं सभी दुखों का नाश
- सोमवार के दिन अवश्य सुननी चाहिए यह व्रत कथा
हिंदू धर्म में सोमवार का व्रत करना बहुत मंगलकारी माना गया है। इस दिन बाबा भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा की जाती है। हिंदू शास्त्रों में सोमवार के व्रत के बहुत सारे व्याख्यान मिलते हैं। इस दिन सुबह जल्दी उठकर और नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर शिवजी को जल चढ़ाया जाता है। जल चढ़ाने के साथ उन्हें बेलपत्र भी चढ़ाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि शिवजी को बेलपत्र बहुत ही प्रिय है। शिव-गौरी की पूजा करने के बाद व्रत कथा सुनना जरूरी है। पंडित यह बताते हैं कि सोमवार का व्रत तीन पहर तक चलता है यानी सोमवार के व्रत को संध्या तक रखा जाता है। अगर कोई सोमवार का व्रत रखना चाहता है तो वह तीन तरह से यह व्रत रख सकता है। प्रति सोमवार व्रत, सौम्य प्रदोष व्रत और सोलह सोमवार का व्रत सोमवार व्रत के तीन प्रकार हैं। भले ही यह व्रत तीन प्रकार के हैं लेकिन इनकी पूजा विधि एक ही है। कोई भी व्रत बिना कथा सुनने पूरा नहीं माना जाता है, इसीलिए इस दिन पूजा करने के बाद यह व्रत कथा जरूर सुनिए।
बहुत समय पहले, एक गांव में एक बहुत ही धनवान साहूकार रहा करता था। साहूकार और उसके पत्नी के जीवन में किसी भी चीज की कमी नहीं थी, लेकिन वह दोनों हमेशा एक समस्या को लेकर चिंता में रहते थे। समस्या यह थी कि उनका एक भी संतान नहीं था। संतान के लिए साहूकार शिव भक्ति में लीन रहता था। वह प्रत्येक सोमवार व्रत रखता था और मंदिर जाकर शिव-गौरी की पूजा श्रद्धा भाव के साथ करता था।
साहूकार के इस भक्तिमय अंदाज को देखकर पार्वती मां उससे अत्यधिक प्रसन्न हो गई थीं। पार्वती मां ने भगवान शिव से कहा की वह साहूकार की इच्छाओं को पूरा कर दें। इस पर भगवान शिव ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि एक प्राणी अपने कर्मों का फल उसके जीवन में भोग कर जाता है। पार्वती मां अपने दयालु स्वभाव के वजह से शिव जी से आग्रह करती रहीं।
मां पार्वती के ममतामई स्वभाव को देखकर शिवजी उनकी इच्छा पूरी करने के लिए तैयार हो गए। शिव जी ने साहूकार को पुत्र का वरदान दिया और कहा कि साहूकार का पुत्र सिर्फ 12 साल तक जीवित रहेगा। साहूकार दोनों की बातों को ध्यान पूर्वक सुन रहा था। भगवान शिव का जो फैसला था वह उसे स्वीकार था। उसने ना ही खुशी जताई और ना ही दुख। पहले की तरह वह अभी भी भगवान शिव की पूजा बहुत ही श्रद्धा भाव से करता रहा।
कुछ समय बाद साहूकार के घर में किलकारियां गूंजी और उसे पुत्र प्राप्ति हुई। धीरे-धीरे समय बीतता गया और उसका पुत्र 11 वर्ष का हो गया था। साहूकार ने अपने पत्नी के भाई को बुलाया और उसे आदेश दिया कि वह उसके पुत्र को काशी ले जाए और वहां उसे विद्या प्राप्त करवाए। साहूकार ने अपने पुत्र के मामा को झोली भरके धन दिया और कहा कि रास्ते में जाते जाते तुम यज्ञ करवाते जाना और अपने यज्ञ के दौरान वहां मौजूद सभी ब्राह्मणों को भोजन करवाना और उन्हें दक्षिणा देना।
साहूकार का आदेश मिलते ही मामा और भांजे काशी जाने के लिए निकल पड़े। रास्ते में उन्होंने जहां भी यज्ञ करवाया वहां ब्राह्मणों को भोजन करवाने के साथ दक्षिणा भी दिया। रास्ते में एक गांव आया जहां का राजा अपनी बेटी की शादी करवाने की तैयारियां कर रहा था। जिस राजकुमार से राजा की बेटी की शादी होनी थी वह काना था। यह बात राजा को नहीं बताई गई थी।
राजकुमार के पिता ने जब साहूकार के बेटे को देखा तो उसने अपने मन में एक तरकीब सोची। उसने विवाह के समय अपने बेटे की जगह साहूकार के बेटे को बिठा दिया। साहूकार का बेटा ईमानदार था, उसने राजा की बेटी के दुपट्टे पर यह लिखा कि वह उसका होने वाला पति नहीं है। उसका होने वाला पति काना है और वह तो साहूकार का बेटा है जो काशी पढ़ने जा रहा था। यह पढ़कर राजकुमारी ने अपने पिता को सारी बात बता दी जिसकी वजह से बारात को वापस जाना पड़ा।
कुछ दिनों बाद मामा और भांजे काशी पहुंच गए और वहां जाकर यज्ञ कराने लगे। जिस दिन साहूकार का बेटा 12 साल का होने वाला था उस दिन भी यज्ञ कराया गया। थोड़ी देर में साहूकार के बेटे ने अपने मामा से कहा कि उसकी तबीयत खराब लग रही है और वह अंदर सोने जा रहा है। भगवान शिव ने साहूकार के बेटे के विधि में जो लिखा था ठीक वैसा ही हुआ। अपने भांजे को मृत पाकर मामा रोने लगा। उसी दौरान मां पार्वती और भगवान शिव वहां से जा रहे थे, अपने रास्ते में माता पार्वती ने शिवजी से कहा कि यह इंसान बहुत कष्ट में दिख रहा है, आप इसके सभी कष्ट दूर कर दीजिए।
जब भगवान शिव ने देखा कि यह वही बालक है तो उन्होंने कहा कि मेरे कहे अनुसार इस बालक ने अपने 12 वर्ष पूरे कर लिए हैं। मां पार्वती ने ममता दिखाते हुए महादेव से बालक की आयु बढ़ाने के लिए आग्रह किया। मां पार्वती की बात सुनकर भगवान शिव ने साहूकार के बेटे के जीवन को बढ़ा दिया। काशी से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद मामा और भांजे वापस अपने गांव की ओर जाने लगे। रास्ते में वही गांव आया जहां उसकी शादी कराई गई थी। मामा और भांजे ने यज्ञ करवाया। उसी दौरान राजा को साहूकार का बेटा दिखा। राजा मामा और भांजे को अपने महल ले गया और वहां से उनके साथ अपनी बेटी को विदा कर दिया।
साहूकार और उसकी पत्नी अपने बेटे को देखने के लिए भूखे-प्यासे उसकी राह देख रहे थे। उन्होंने यह सोच रखा था कि अगर उनको अपने बेटे के मृत होने की खबर पता चली तो वह भी अपनी जान दे देंगे। जब उनको पता चला कि उनका बेटा सही सलामत है तो वह बहुत खुश हुए। जिस दिन उनका बेटा घर आया था, उस रात साहूकार के सपने में भगवान शिव जी ने दर्शन दिए थे। भगवान शिव जी ने कहा कि वह साहूकार के व्रत और कथा सुनने से बहुत खुश हुए थे इसीलिए उन्होंने उसके पुत्र के जीवन काल को बढ़ा दिया था। इसीलिए कहा जाता है कि सोमवार का व्रत करने से और पूजा के बाद कथा सुनने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।