- कौरवों-पांडवों के बीच लड़ाई से लेकर महाभारत युद्ध तक में द्रौपदी का वर्णन मिलता है
- द्रोपदी पांचाल देश के राजा द्रुपद की कन्या थी। वह एक दिव्य कन्या थी
- पांडवों के साथ परलोक की यात्रा के दौरान द्रौपदी की मृत्यु हो गई थी
महाभारत में द्रौपदी की भूमिका का काफी वर्णन मिलता है। कौरवों-पांडवों के बीच लड़ाई से लेकर महाभारत युद्ध तक में द्रौपदी का वर्णन मिलता है। द्रोपदी पांचाल देश के राजा द्रुपद की कन्या थी। वह एक दिव्य कन्या थी, जिसका जन्म अग्निकुंड से हुआ था। कहा जाता है कि जब पांडव और कौरवों ने अपनी शिक्षा पूरी की थी तो द्रोणाचार्य ने उनसे एक गुरुदक्षिणा मांगी थी। द्रोणाचार्य ने वर्षो पूर्व द्रुपद से हुए अपने अपमान का बदला लेने का काम कौरवों और पांडवों को सौंपा था।
उन्होंने पांडवो-कौरवों से कहा कि पांचाल नरेश द्रुपद को बंदी बनाकर मेरे समक्ष लाओ। कौरवों ने पहले द्रुपद पर हमला किया लेकिन वे हार गए इसके बाद पांडवों ने द्रुपद पर हमला किया जिसमें उन्हें जीत मिली। वे उन्हें बंदी बनाकर द्रोणाचार्य के पास ले आए। द्रोणाचार्य ने उनसे उनका आधा राज्य ले लिया और उन्हें छोड़ दिया। द्रुपद ने इसी अपमान का बदला लेने के लिए अद्भुत यज्ञ करवाया जिससे द्रोपदी का जन्म हुआ।
द्रौपदी का विवाह पांच पांडवों से हुआ था। युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, भीम से उनका विवाह हुआ था। चूंकि अर्जुन ने ही द्रौपदी को स्वयंवर में जीता था इसलिए द्रौपदी पांचों में से अर्जुन से सबसे ज्यादा प्रेम करती थी। द्रोपदी की खूबसूरती पर कौरवों के बड़े भाई दुर्योधन की नजरें लगी रहती थी। एक बार दुर्योधन ने भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण किया था जिसके बाद कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध छिड़ गया था।
कैसे हुई थी द्रौपदी की मृत्यु
द्रौपदी को लेकर यूं तो महाभारत में कई कहानियां आपने सुनी होंगी। यहां हम आपको आज बताएंगे द्रौपदी की मृत्यु कैसे हुई थी। यदुवंशियों का राजपाट समाप्ट हो जाने के बाद पांडवों को इसका काफी दुख हुआ। इसके बाद युधिष्ठिर ने वेद व्यास से अनुमति लेकर राजपाट छोड़कर परलोक जाने का निश्चय किया। पांडवों के स्वर्गारोहण की कहानी में इसका वर्णन मिलता है। महाभारत में 18 पर्व में से एक है महाप्रस्थानिक पर्व है, जिसमें पांडवों की महान यात्रा अर्थात मोक्ष की यात्रा का उल्लेख है। भारत यात्रा करने के बाद मोक्ष प्राप्त करने के लिए पांडव द्रौपदी के साथ हिमालय की गोद में चले गए।
वहां मेरु पर्वत के पार उन्हें स्वर्ग का रास्ता मिला। पांचों पांडवों के साथ द्रौपदी और एक कुत्ता उनके साथ यात्रा पर था। इसी दौरान द्रौपदी लड़खड़ाकर गिर पड़ी। भीम ने पूछा कि उसने कभी कोई पाप नहीं किया हो तो ये कैसे गिर गईं इस पर युधिष्ठिर ने कहा कि ये हम पांचों में से अर्जुन को सबसे ज्यादा प्रेम करती थी, इतना कहकर वे उन्हें बिना देखे आगे बढ़ गए। इसी यात्रा के दौरान द्रौपदी की मृत्यु हो गई थी। इस यात्रा में एक-एक करके सारे पांडव भाई मौत की आगोश में चले गए। सबसे पहले इसमें द्रौपदी की मृत्यु हुई थी। लेकिन यहां रोचक बात ये है कि केवल युधिष्ठिर को ही स्वर्ग में प्रवेश करने की अनुमति मिली थी।