- चतुर्थी का श्राद्ध ब्रह्म नदी के किनारे करने का विधान है
- श्राद्ध के बाद मार्कंडेय महादेव का दर्शन करना चाहिए
- भगवान व नदी का स्मरण कर के भी श्राद्ध किया जा सकता है
आश्विन कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर ब्रह्म सरोवर में स्नान कर पिंडदान का विधान माना गया है। मान्यता है कि इससे पितरों को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। ब्रह्म सरोवर पर सात पीढ़ी तक पिंड दान किया जा सकता है। पिंडदान के बाद मार्कंडेय महादेव का दर्शन करने की परंपरा है। इससे श्राद्ध का पूरा फल पितरों को प्राप्त होता है।
पितृपक्ष में यदि आप ब्रह्म सरोवर पर पिंडदान नहीं कर सकते तो आप जब भी पिंडदान करें ब्रह्म सरोवर का स्मरण कर लें। साथ ही मार्कंडेय महादेव को याद करते हुए उनसे गलतियों के लिए क्षमा याचना करते हुए पितरों की शांति की प्रार्थना करें।
इन नियमों के साथ करें श्राद्ध प्रक्रिया
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पितृ पक्ष में हर दिन पितरों का तर्पण करना चाहिए, लेकिन यदि आप रोज न कर सकें तो कम से कम उनकी मृत्यु तिथि पर जरूर करें। जल में दूध, जौ, काला तिल और गंगाजल मिलाकर तर्पण करें। .
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श्राद्ध में पिंड दान जरूर करें और कोशिश करें कि पिंडदान किसी भी नदी के किनारे करें। पिंडी चावल, दूध और तिल को मिलाकर बनाया जाता है। पिंड पितरों का शरीर होता है।
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श्राद्ध के बाद पंचबलि कर्म जरूर करें। इसमें ब्राह्मण समेत गाय, कुत्ते, चींटी और कौवे को जरूर भोजन दें।
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श्राद्धकर्म और भोज हमेशा दक्षिण दिशा की ओर मुख कर ही करना चाहिए।
श्राद्ध में इन चीजों की है मनाही
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श्राद्ध पक्ष में बाल व नाखून काटने के साथ ही शरीर पर तेल लगाने निषेध है। ब्रह्मचर्य का पालन करना भी जरूरी होता है।
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पितृ पक्ष में रंगीन फूलों का भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। पितरों के हमेश सफेद पुष्प चढ़ाएं।
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पितृ पक्ष में चना, मसूर, बैंगन, हींग, शलजम, मांस, लहसुन, प्याज और काला नमक खाना और दान करना मना है।
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श्राद्ध भोज में चने का उपयोग भूल कर भी न करें क्योंकि ये पितृ पक्ष में वर्जित है।
नियमों का ध्यान करते हुए श्राद्धकर्म करना चाहिए, ताकि पूर्वजों को श्राद्ध का पूरा फल मिल सके।