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Sakat Chauth Vrat Katha: बिना कथा सुने सकट चौथ का व्रत माना जाता है अधूरा, सुननी चाहिए गणेश जी की यह कथा

Updated Jan 31, 2021 | 06:14 IST

सकट चौथ के दिन व्रत सुनना आवश्यक माना जाता है। बिना कथा सुने सकट चौथ का व्रत पूर्ण नहीं होता है। जो भक्त भगवान गणेश जी की यह कथा सुनकर अपना व्रत पूर्ण करते हैं उनकी मनोकामनाएं हमेशा पूरी होती हैं।

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सकट चौथ हिंदी व्रत कथा
मुख्य बातें
  • 31 जनवरी 2021 को मनाया जाएगा सकट चौथ
  • कथा सुनने से सकट चौथ का व्रत होता है पूरा
  • गणेश जी की यह कथा सुनने से होती हैं सभी मनोकामनाएं पूरी

हिंदू धर्म शास्त्रों में यह कहा गया है कि किसी भी व्रत के बाद कथा सुनना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है और इससे कई लाभ मिलते हैं। बिना कथा सुने कोई भी व्रत पूरा नहीं माना जाता है, इसीलिए सकट चौथ के दिन भी भक्तों को व्रत करने के बाद गणेश जी की कथा जरूर सुननी चाहिए। हर महीने में चतुर्थी तिथि दो बार आती हैं। पहली चतुर्थी तिथि शुक्ल पक्ष में आती है और दूसरी चतुर्थी तिथि कृष्ण पक्ष में आती है।

शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है दूसरी ओर कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। माघ महीने के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी तिथि बहुत ही अनुकूल मानी जाती है और इसे संकष्टी चतुर्थी या सकट चौथ के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष 31 जनवरी को सकट चौथ मनाया जाएगा। अगर आप भी सकट चौथ का व्रत करना चाहते हैं तो कथा सुनकर ही अपने व्रत को समाप्त करें। यहां जानिए सकट चौथ का महत्व और कथा।

सकट चौथ का महत्व? सकट चौथ के नाम से ही पता लगाया जा सकता है कि यह चौथ संकट हरने के लिए मनाया जाता है। इस चौथ के दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है और भक्त उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। कहा जाता है कि जो महिलाएं अपनी संतान की सलामती, मंगलकामना और लंबी उम्र के लिए इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं भगवान गणेश उनकी मनोकामनाएं जरूर पूरी करते हैं। इस दिन जो भक्त भगवान गणेश की श्रद्धा भाव के साथ पूजा-अर्चना करता है उसको मनवांछित फल मिलता है। 

सकट चौथ की कथा: माता पार्वती ने गणेश को सौंपा था एक कार्य

हिंदू धर्म में सुनाए जाने वाले पौराणिक कथा के अनुसार, यह कहा जाता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश के ऊपर बहुत बड़ा संकट आया था जिसका निवारण चतुर्थी के दिन ही हुआ था इसीलिए इस चतुर्थी तिथि को सकट चौथ कहा जाता है। दरअसल हुआ यह था कि, भगवान गणेश की मां, माता पार्वती स्नान करने के लिए जा रही थीं तब उन्होंने गणेश को पहरा देने का काम सौंपा था। यह कार्य सौंपते समय माता पार्वती ने भगवान गणेश को यह आदेश दिया था कि वह किसी को भी अंदर आने नहीं देंगे। यह कार्य सौंपकर माता पार्वती स्नान करने के लिए चली गईं तभी कुछ समय बाद भगवान शिव वहां आए। भगवान शिव को अंदर जाते देख कर भगवान गणेश ने उन्हें जाने से मना किया। 

गणेश जी के ऊपर आया संकट
गणेश जी का यह दुस्साहस देखकर भगवान शिव को गुस्सा आया और उन्होंने अपना त्रिशूल निकाल लिया। भगवान शिव ने गणेश जी को चुनौती दी कि अगर गणेश उन्हें अंदर जाने नहीं देंगे तो उन्हें बुरा अंजाम भुगतना पड़ सकता है। गणेश जी अपने वचन से प्रतिबद्ध थे, शिवजी के ललकारने के बाद भी गणेश जी ने उनकी बात नहीं मानी। यह देखकर शिवजी ने अपने त्रिशूल से गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया। जब माता पार्वती बाहर आईं तब गणेश जी की यह हालत देख कर वह रोने लगीं और शिव जी से अनुरोध करने लगीं कि उनके पुत्र को वापस जीवित किया जाए।

इसीलिए मनाया जाता है इस दिन सकट चौथ
माता पार्वती के विलाप को देखकर शिव जी ने हाथी का सिर गणेश जी पर लगा दिया। अपनी शक्ति से शिव जी ने भगवान गणेश को दूसरा जीवन दिया और गणेश जी को यह आशीर्वाद मिला कि किसी भी पूजा में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाएगी। तब से लेकर अब तक इस तिथि पर गणेश जी की पूजा की जाती है। माना जाता है कि जो भक्त इस दिन भगवान गणेश की पूजा करते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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