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Utpanna Ekadashi 2019: जानें कब है उत्पन्ना एकादशी, क्या है इसका महत्व एवं पूजा विधि

Updated Nov 12, 2019 | 15:11 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

Utpanna Ekadashi importance: माना जाता है कि उत्पन्ना एकादशी के दिन व्रत रखने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। यहां पढ़ें इसकी व्रत कथा एवं महत्‍व....

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तस्वीर साभार:&nbspInstagram
Utpanna Ekadashi 2019

हिंदू धर्म में उत्पन्ना एकादशी का बहुत महत्व है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु और एकादशी माता की पूजा की जाती है। मान्यताओं के अनुसार इसी दिन एकादशी माता का जन्म हुआ था, इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी कहते हैं। माना जाता है कि उत्पन्ना एकादशी के दिन व्रत रखने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। यही कारण है कि ज्यादातर लोग पूरे विधि विधान से उत्पन्ना एकादशी का व्रत एवं पूजन करते हैं।

उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष के दिन मनायी जाती है। प्रत्येक महीने दो एकादशी पड़ती है। जो लोग एकादशी का व्रत रखते हैं वो लोग इस व्रत की शुरूआत उत्पन्ना एकादशी के व्रत से ही करते हैं। कहा जाता है कि उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने मुरमुरा नामक राक्षस को मारा था। इस खुशी में उत्पन्ना एकादशी मनायी जाती है। उत्तर भारत में उत्पन्ना एकादशी मार्गशीर्ष महीने में पड़ती है जबकि कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश एवं गुजरात में उत्पन्ना एकादशी कार्तिक मास में पड़ती है। इस दिन खासतौर से भगवान विष्णु और माता एकादशी की पूजा की जाती है। इस वर्ष उत्पन्ना एकादसी 22 नवंबर को पड़ेगी।

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
सतयुग में मुर नामक एक शक्तिशाली राक्षस था। उसने स्वर्गलोक पर कब्जा कर लिया जिसके कारण सभी देवताओं को मृत्यु लोक में जाना पड़ा। इससे दुखी होकर स्वर्ग के राजा इंद्र भगवान शंकर के पास पहुंचे और देवताओं की रक्षा करने के लिए कहा। तब भोलेशंकर ने कहा कि भगवान विष्णु आपकी मदद कर सकते हैं। इंद्र के साथ सभी देवता क्षीरसागर पहुंचे और भगवान विष्णु से रक्षा करने की याचना की। तब भगवान विष्णु ने चंद्रनगरी पहुंचर मुर नामक राक्षसे से युद्ध शुरू कर दिया। 

युद्ध कई वर्षों तक चलता रहा और इसी बीच भगवान विष्णु को नींद आने लगी तो वह एक गुफा में शयन करने चले गए। तब मुर राक्षस ने एक अस्त्र से भगवान विष्णु पर प्रहार किया। लेकिन भगवान के अंदर से एक कन्या उत्पन्न हुई और उसने भगवान विष्णु को बचा लिया। नींद खुलने पर भगवान विष्णु ने उस कन्या का नाम एकादशी रखा और वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति एकादशी का व्रत रखेगा उसे सभी पापों से छुटकारा मिल जाएगा।

उत्पन्ना एकादशी व्रत की विधि

  • इस एकादशी का व्रत दशमी की रात से शुरू होता है जो द्वादशी के सूर्योदय तक रहता है। दशमी के दिन सात्विक भोजन ग्रहण कर इस व्रत की शुरूआत की जाती है।
  • उत्पन्ना एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान करके भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करना फलदायी होता है। इसके बाद भगवान विष्णु और माता एकादशी की पूजा की जाती है।
  • एकादशी का व्रत रखने के बाद किसी भी तरह का अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। उत्पन्ना एकादशी का निर्जला व्रत रखने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
  • इस दिन अश्वमेघ यज्ञ कराने और भगवान विष्णु की कथा सुनने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
  • उत्पन्ना एकादशी के दिन दीपदान और अन्नदान करना चाहिए। इसके अलावा गरीबों, जरूरतमंदों और ब्राह्मणों को अपने सामर्थ्य के अनुसार दान देना चाहिए।
  • रात्रि में भजन कीर्तन करना चाहिए और देवी देवताओं की आराधना करनी चाहिए।

इस तरह से उत्पन्ना एकादशी के सभी व्रत और पूजन नियमों का पालन करने से भगवान विष्णु और माता एकादशी प्रसन्न होती हैं और व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।

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