- सावित्री ने अपने पति सत्यवान की जान बचाई थी
- यमराज ने सावित्री को तीन वरदान मांगने को कहा था
- तीसरे वरदान में सौ पुत्र की मां बनने का मांगा था आशीर्वाद
अपने पति की जान बचाने के लिए सावित्री ने यमराज का सामना किया था। यमराज ने पतिव्रता सावित्री का अनन्य प्रेम देख सत्यवान के प्राण बक्श दिए थे। सावित्री ने अपने पति के प्राण यमराज से छीने लिए थे और कैसे यमराज को बातों में उलझा कर सौ पुत्र पाने का वरदान लिया था। व्रत कथा सुनने से सुहागिनों को भी अपने पति की लंबी आयु का वरदान मिलता है। केवल पति ही नहीं इस व्रत करने और कथा को सुनने से संतान सुख की भी प्राप्ति होती है।
इस दिन वट वृक्ष की पूजा का विधान हैं। वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ ही यमराज का भी वास माना गया है। इसलिए इस दिन वट वृक्ष की पूजा जरूर करनी चाहिए। साथ ही वृक्ष में देवी गौरा का भी अंश होता है और यही कारण है सुहागिनों को देवी का आशीर्वाद भी मिलता है। व्रत और पूजा के साथ वट सावित्रि कथा सुनना भी बहुत महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि इसके बिना पूजा और व्रत अधूरा माना जाता है।
Vat Savitri Puja Vidhi / वट सावित्री पूजन विधि
इस व्रत की पूजा के लिए विवाहित महिलाओं को बरगद के पेड़ के नीचे पूजा करनी होती है। फिर सुबह नहाने के बाद पूरे 16 शृंगार करके दुल्हन की तरह सज धज कर हाथों में प्रसाद लें। प्रसाद के रूप में थाली में गुड़, भीगे हुए चने, आटे से बनी हुई मिठाई, कुमकुम, रोली, मोली, 5 प्रकार के फल, पान का पत्ता, धुप, घी का दीया, एक लोटे में जल और एक हाथ का पंखा लेकर बरगद पेड़ के नीचे जाएं।
फिर पेड़ की जड़ में पानी चढा कर प्रसाद चढ़ाएं और धूप तथा दीपका जलाएं। उसके बाद पूजा करते हुए भगवान से पति के लिए लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करें। फिर सावित्री मां से आशीर्वाद लें और पेड़ के चारो ओर कच्चे धागे से या मोली को 7 बार बांधे और प्रार्थना करें। फिर पति के पैर धो कर आशीर्वाद लें।
Vat Savitri Vrat Katha / वट सावित्री व्रत कथा
भद्र देश के राजा अश्वपति की कोई संतान न थी और संतान पाने के लिए वह प्रतिदिन मंत्रोच्चारण के साथ एक लाख आहुतियां दिया करते थे। 18 साल तक वह यह निरंतर करते रहे जब उनसे प्रसन्न हो कर देवी सावित्रि ने उन्हें वरदान दिया कि उन्हें अत्यंत तेजस्वी कन्या की प्राप्ति होगी। देवी के कहे अनुसार राजा को कन्या की प्राप्ति हुई और उनका नाम देवी के नाम पर ही सावित्रि रखा गया।
सावित्रि बेहद सुगुण और रूपवान थीं, लेकिन उनके लिए योग्य वर ही नहीं मिल रहा था। इससे राजा दुखी थे और एक दिन स्वयं राजा ने सावित्रि को अपने लिए वर ढूंढने के लिए बोल दिया। सावित्री तपोवन में भटक रही थीं कि तभी उन्हें वहां साल्व देश के राजा द्युमत्सेन मिले। उनका राज्य किसी ने छीन लिया था इसलिए वह जंगल में रह रहे थे। वहीं पर सावित्रि को राजा के पुत्र सत्यवान भी नजर आए। सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण कर लिया।
ऋषिराज नारद को जब यह बात पता चला तो वह राजा अश्वपति के पास पहुंचे और उनसे कहा कि यह क्या कर रहे हैं आप ? सत्यवान गुणवान हैं, धर्मात्मा हैं और बलवान भी हैं, लेकिन अल्पायु हैं। एक वर्ष के बाद ही उनकी मृत्यु तय है। यह सुनकर राजा घबरा गए और सावित्रि को समझाया की वह विवाह के लिए सत्यवान को न पसंद करें, लेकिन सावित्रि ने कहा कि पिताजी, आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं, राजा एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है।
सावित्री के हठ के आगे उनका विवाह उनके पिता ने सत्यवान से कर दिया। सावित्री अपने ससुराल में सास-ससुर की सेवा करने लगी। समय बीतता गया और सत्यवान की मृत्यु का दिन नजदीक आ गया। जैसे-जैसे करीब आने लगा, सावित्री अधीर होने लगीं। उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी लकड़ी काटने जंगल चले गये साथ में सावित्री भी गईं, लेकिन अचानक ही सत्यवान की तबियत खराब हो गई।
सत्यवान के सिर को गोद में रखकर सावित्री सत्यवान का सिर सहलाने लगीं, तभी वहां यमराज आते दिखे। यमराज अपने साथ सत्यवान को ले जाने लगे। सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ीं। यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की कि यही विधि का विधान है, लेकिन सावित्री नहीं मानी। सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देख यमराज ने सावित्री से कहा कि देवी, तुम धन्य हो। तुम मुझसे कोई भी वरदान मांग सकती हो।
सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं। उनकी आंख उन्हे लौट दें। यमराज ने ऐसा ही किया लेकिन सावित्री फिर भी पीछे चलती ही रहीं। यमराज ने कहा देवी तुम वापस जाओ। सावित्री ने कहा भगवन मुझे अपने पतिदेव के पीछे-पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है। पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है। यह सुनकर उन्होने फिर से उसे एक और वर मांगने के लिए कहा। तब सावित्रि ने कहा कि मेरे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे पुन: वापस दिला दें। यमराज ने ये इच्छा भी पूरी कर दी, लेकिन सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं। तब यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा। सावित्रि ने यमराज से 100 संतानों का वरदान मांगा। यमराज ने सावित्रि से पीछा छुड़ाने के लिए ये आशीर्वाद भी दे दिया।
सावित्री ने यमराज से कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। यमराज अंतध्यान हो गए और सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था। सत्यवान जीवंत हो गए और उनके सास-ससुर की आंखें और राज्य भी वापस मिल गए थे।
वट सावित्री व्रत करने और इस कथा को सुनने से उपवासक के वैवाहिक जीवन या जीवन साथी की आयु पर किसी प्रकार का कोई संकट आया भी हो तो वो टल जाता है।