- काम और क्रोध से विद्यार्थियों को दूर रहना चाहिए
- नींद को कभी खुद पर हावी नहीं होने देना चाहिए
- श्रृंगार और हंसी मजाक से दूर रहना चाहिए
आचार्य चाणक्य का मानना था कि विद्यार्थी जीवन एक तप के समान होता है। जिस तरह से तप करने के बाद एक तपस्वी को ईश्वर की प्राप्ति होती है, ठीक उसी तरह विद्यार्थियों को भी सफलता तभी मिलती है, जब वह अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए तप के समान जीवन जीते हैं। विद्यार्थियों के जीवन पर उनके परिवार, आसपास के माहौल और शिक्षा का प्रभाव जरूर पड़ता है, लेकिन कई बार विपरीत माहौल में भी विद्यार्थी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं और इसके पीछे आठ सूत्र काम करते हैं। इन आठ सूत्रों के बारे में चाणक्य ने अपनी नीति में विस्तार से बताया है।
Chanakya Ki Salah : Students ke liye Safalta Sutra
- क्रोध : चाणक्य का मानना था कि क्रोध विद्यार्थियों के ज्ञान को खत्म कर देता है। जो विद्यार्थी अपने क्रोध पर काबू नहीं कर सकता, वह ज्ञान हो कर भी अज्ञानी के समान होता है। क्योंकि क्रोध में उसका ज्ञान काम नहीं आता। इसलिए हर विद्यार्थी को अपने क्रोध को काबू में रखने का प्रयास करना चाहिए। रावण महाज्ञानी होते हुए भी क्रोध और अहांकर के कारण सब कुछ गंवा बैठा था।
- लोभ : विद्यार्थियों के अंदर लोभ यानी लालच की भावना नहीं होनी चाहिए। इस पर नियंत्रण रखना हर विद्यार्थी के लिए जरूरी है। क्योंकि लालच मनुष्य को बुरे कर्म की ओर धकेलता है और एक बार लालच इंसान के अंदर आ जाए तो वह निरंतर इस दलदल में फंसता जाता है और उसका ज्ञान उस लालच की मंशा के आगे हार जाता है। विद्यार्थी को केवल ज्ञान का लालच होना चाहिए।
- स्वादिष्ठ व्यंजन खाने की ललक: चाणक्य का मानना था कि विद्यार्थी को ऐसा भोजन करना चाहिए जो उसके बुद्धि विकास के लिए हो। रोज स्वादिष्ट खाने की चाह रखने वाला विद्यार्थी ज्ञान नहीं जीभ का गुलाम बनता है। जीभ के गुलाम विद्यार्थी केवल खाने के बारे में ही सोचता है। उसका पढ़ने-लिखने में मन नहीं लग सकता,क्योंकि ज्यादा तला-भुना या तामसिक भोजन मनुष्य के विचार भी वैसे ही कर देता है। इसलिए विद्यार्थियों को सादा भोजन ही करना चाहिए।
- श्रृंगार: विद्यार्थियों को अपने ज्ञानार्जन काल में श्रृंगार आदि से दूर रहना चाहिए। श्रृंगाकर करने के प्रति एक बार यदि मन लग गया तो विद्यार्थी का मन पढ़ने से हटने लगेगा। ऐसे में विद्यार्थी खुद को सजाने-संवारने में ही वक्त बीताएगा। क्योंकि श्रृंगार एक नशे की तरह उसके दिमाग पर हावी होगा और वह इसी में रम जाएगा।
- बहुत ज्यादा हंसी : मजाक में लीन होना : विद्यार्थी बहुत ज्यादा हंसी-मजाक वाली जगहों से हट जाना चाहिए,क्योंकि ऐसे स्थान पर पढ़ने को छोड़ कर सारी बातें होती हैं। कई बार हास्य और परिहास्य के कारण आपसी मतभेद भी होते हैं और कई बार इन सब में ही मन ज्यादा लगने लगता है। ऐसे में पढ़ाई के प्रति मन हटने लगता है। विद्यार्थी को अपनी सीमा में रहकर ही हंसी-मजाक करना चाहिए।
- निद्रा : चाणक्य का मानना था कि जो विद्यार्थी निद्रा यानी नींद से नहीं जीत सकता है, वह अपने ज्ञान और अनुभव के बाद भी सफलता नहीं पा सकता। नींद इंसान के ज्ञान को खा जाती है। इसलिए सही समय पर जागना और सही समय पर सोने के साथ ही नींद पर काबू रखना भी विद्यार्थी को आना चाहिए।
- काम-वासना : चाणक्य की नीतियां बताती हैं कि जिस विद्यार्थी को काम-वासना की लत लग जाती है वह जीवन में कभी भी सफलता प्राप्त नहीं कर पाता। काम-वासना एक लत है और इसमें पड़ने के बाद इंसान सिर्फ इन्हीं चीजों को सोचता है। विद्यार्थियों को काम वासना से अपने मन को काबू में रखना आना चाहिए।
- शरीर प्रेमी होना : जिस विद्यार्थी के अंदर अपने शरीर के प्रति प्यार उत्पन्न हो जाए और वह उसे बनाने-संवारे में लग जाए वह कभी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। शरीर की सेवा में अत्यधिक समय देना विद्यार्थी को शिक्षा से दूर ले जाता है।
एक विद्यार्थी को चाणक्य की ये आठ बातें अपने जीवन काल में जरूर पालन करनी चाहिए। अगर इन बातों को उसने जीवन में उतार लिया तो सफलता में थोड़ी देर भले ही हो लेकिन निराशा हाथ नहीं लगेगी।